नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन कानून पर सुनवाई जारी है। सॉलिसीटर जनरल ने दलील देना शुरू किया है। उन्होंने कहा कि कुल 232 याचिकाएं हैं। केंद्र ने जवाब दाखिल कर दिया है और हमें असम और त्रिपुरा की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए कुछ समय चाहिए। सीजीआई ने कहा कि ये मांग आखिरी मौके पर भी की गई थी। हालांकि रविवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सीएए को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज करने की अपील करते हुए कहा कि इससे यह अवैध आव्रजन को बढ़ावा नहीं देता। बल्कि यह एक स्पष्ट कानून है जो केवल छह निर्दिष्ट समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है जो असम समेत देश में 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले आए थे। इस कानून से भविष्य में भी देश में विदेशियों का तांता लगने का खतरा नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की पीठ के समक्ष केवल सीएए के मुद्दे पर 31 अक्टूबर को 232 याचिकाएं सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है, जिनमें ज्यादातर जनहित याचिकाएं हैं। इससे पहले, जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं को तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाएगा। इस मुद्दे पर मुख्य याचिका इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आइयूएमएल) ने दायर की थी।
गृह मंत्रालय ने 150 पेज का हलफनामा दाखिल किया
केंद्रीय गृह मंत्रालय के दायर 150 पेज के हलफनामे में कहा गया कि संसद भारतीय संविधान के अनुच्छेद 245(1) में प्रदत्त अधिकारों के तहत संपूर्ण भारत या उसके किसी भी हिस्से के लिए कानून बनाने में सक्षम है। गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव सुमंत सिंह के दायर हलफनामे में सभी याचिकाओं को खारिज करने की अपील की गई है। सीएए-2019 से भारत में 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को नागरिकता प्राप्त करने की सुविधा मिलती है।
यह सुविधा भी उनके लिए ही है जिन्हें पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 और अन्य संगत प्रविधानों और फारेन एक्ट, 1946 के तहत केंद्र सरकार से छूट हासिल है।
याचिका दायर करने वालों में ये नाम शामिल
याचिका दायर करने वाले अन्य महत्वपूर्ण लोगों में कांग्रेस नेता जयराम रमेश, राजद नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और एआइएमआइएम नेता असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल हैं। मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद, आल असम स्टूडेंट्स यूनियन, पीस पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, गैर-सरकारी संगठन ‘रिहाई मंच’, अधिवक्ता एमएल शर्मा और कानून के छात्रों ने भी इस अधिनियम को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।