छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ : नहीं रहे रमेश नैयर, अंतिम संस्कार कल, कहते थे- ना वाम की तरफ हूं , ना दक्षिण की तरफ, मैं राष्ट्रवादी हूं…

रायपुर I छत्तीसगढ़ के प्रख्यात पत्रकार और हिंदी ग्रंथ अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश नैयर नहीं रहे। वे 83 वर्ष के थे। उनकी अंतिम यात्रा उनके समता काॅलोनी स्थित निवास स्थान से 4 नवंबर को सुबह 10 बजे मारवाड़ी मुक्तिधाम के लिए निकलेगी। वे अपने पीछे पत्नी इंद्रमोहिनी नैयर, बेटे संजय व संदीप को छोड़ गए हैं। रमेश नैयर अपनी निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए पूरे देश में जाने जाते थे। उन्होंने कई प्रमुख अखबारों में अपनी सेवाएं दीं। वे कई अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में हिस्सा ले चुके हैं। उन्होंने चार पुस्तकों का संपादन भी किया।

अंग्रेजी, उर्दू और पंजाबी की सात पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद भी किया। उन्होंने सागर विश्वविद्यालय और पं. रविशंकर विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की। वे छत्तीसगढ़ हिंदी ग्रंथ अकादमी के अध्यक्ष भी रहे। राज्यपाल अनुसुइया उइके ने रमेश नैयर के निधन पर शोक व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि स्व. नैयर ने छत्तीसगढ़ के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी पत्रकारिता के प्रतिमान स्थापित किए। स्पीकर डॉ. चरणदास महंत, नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, डॉ. रमन सिंह, धरमलाल कौशिक, मोहन मरकाम, बृजमोहन अग्रवाल, शैलेष नितिन त्रिवेदी व कई संगठनों ने श्रद्धांजलि दी है।

‘दायां हाथ क्या कर रहा है यह बाएं हाथ को नहीं मालूम होना चाहिए ’
बतौर प्रशिक्षु रिपोर्टर एक प्रारंभिक मीटिंग्स में संपादक रमेश नैयर ने यह कहा था और मैं यह कभी भूला नहीं । यह बहुत छोटी सी सीख थी लेकिन पत्रकारिक नैतिकता से जुड़े बड़े मायने की थी।
मैं पारिवारिक संबंधों के कारण उन्हें अंकल ही संबोधित करता था पर सबके लिए वो नैयर जी थे।

नैयर जी का मतलब था एक समृद्ध बौद्धिक क्षमता और विशाल अनुभव संसार वाले पत्रकार , नैयर जी का मतलब एक जीवंत न्यूज रूम था ,नैयर जी का मतलब सहकर्मियों की पत्रकारिक स्वतंत्रता, नैयर जी का मतलब एक ऐसे संपादक जो अपने चैंबर में कॉफी पीते हुए अपने साथियों को स्थानीय से ले कर अंतरराष्ट्रीय मसलों तक शिक्षित करते चलते रहे।

वो शुरुआती दिन थे और तब अखबार के दफ्तर से लेकर कॉफी हाउस के एक कोने तक उनकी चुटकियों से,उनके व्यंग्य से,उनके शेरों से ,उनकी समझ से और हां,उनके दोस्तों से माहौल सजीव रहता था। दरअसल रमेश नैयर जी का मतलब अपने आप में एक समाज,उसका चिंतन और उसके सरोकार थे।

वैचारिक रूप से मेरी धारा अलग रही लेकिन उनके सहकर्मी के रूप में एक बार स्कूटर पर घूमते हुए उन्होंने कहा– ‘मैं विचार को लेकर स्पष्ट हूं। ना वाम की तरफ हूं , ना दक्षिण की तरफ। मैं राष्ट्रवादी हूं।’आज राष्ट्रवादी शब्द ने अपना अलग आंगन बना लिया है लेकिन सक्रिय पत्रकारिता करते हुए रमेश नैयर इस शब्द को उसके सकारात्मक अर्थों में जीते रहे।

किताबों से उनका लगाव ,हिंदी,अंग्रेजी ,उर्दू और पंजाबी भाषा पर उनकी मजबूत पकड़ और इन भाषाओं में अनुवाद की उनकी क्षमता से लेकर राजनीति ,समाज, मानवाधिकार जैसे सवालों तक के प्रेक्षक,विश्लेषक और साहित्य–संस्कृति से लेकर इतिहास तक उनका विस्तृत अध्ययन और उनकी अपनी समझ ,जीवन के हर क्षेत्र में और देश के शायद हर कोने में उनके संबंध और संपर्क बतौर पत्रकार उन्हें उस स्तर पर प्रतिष्ठित करते रहे जहां होना किसी पत्रकार की चाह होती है।

वो छत्तीसगढ़ ग्रंथ अकादमी के बरसों अध्यक्ष रहे और शायद अकादमी ने उनके कार्यकाल में ही सबसे ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित कीं। पत्रकारों के लिए रमेश नैयर इंस्टीट्यूशन थे। बुधवार को उनके अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और तमाम वरिष्ठ पत्रकार याद कर रहे थे कि किस तरह वो ताउम्र पत्रकारों की अगली पीढ़ी का निर्माण करते रहे। निर्माण की उनकी इन कोशिशों को मैंने भी जीया। छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के अलग अलग हिस्सों में भी उनसे पाए संस्कारों के साथ पत्रकार काम कर रहे हैं। नैयर जी जैसे पत्रकार ऐसे ही तो याद रहते हैं ।