नईदिल्ली I पौराणिक कथाओं के अनुसार भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र में बने रामसेतु को लेकर लगातार बहस होती रही है. इसी बीच अब केंद्र सरकार की तरफ से संसद में इसे लेकर जवाब दिया गया है. सरकार ने कहा है कि रामसेतु के वजूद के पूरे सबूत अभी नहीं मिले हैं. हरियाणा से निर्दलीय सांसद कार्तिकेय शर्मा ने राज्यसभा में इस मुद्दे को उठाया. उन्होंने सरकार से पूछा कि मैं पूछना चाहता हूं कि क्या सरकार हमारे गौरवशाली इतिहास को लेकर कोई साइंटिफिक रिसर्च कर रही है? क्योंकि पिछली सरकारों ने लगातार इस मुद्दे को तवज्जो नहीं दी. उनके इस सवाल पर केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने जवाब दिया.
सरकार की तरफ से दिया गया ये जवाब
सरकार की तरफ से जवाब देते हुए जितेंद्र सिंह ने कहा, मुझे खुशी हो रही है कि हमारे सांसद ने रामसेतु को लेकर सवाल किया. इसे लेकर हमारी कुछ सीमाएं हैं. क्योंकि ये करीब 18 हजार साल पहले का इतिहास है. जिस ब्रिज की बात हो रही है वो करीब 56 किमी लंबा था. स्पेस टेक्नोलॉजी के जरिए हमने पता लगाया कि समुद्र में पत्थरों के कुछ टुकड़े पाए गए हैं, इनमें कुछ ऐसी आकृति है जो निरंतरता को दिखाती हैं. समुद्र में कुछ आइलैंड और चूना पत्थर जैसी चीजें दिखीं हैं. अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो ये कहना मुश्किल है कि रामसेतु का वास्तविक स्वरूप वहां मौजूद है. हालांकि कुछ संकेत ऐसे भी हैं जिनसे ये पता चलता है कि स्ट्रक्चर वहां मौजूद हो सकता है. हम लगातार प्राचीन द्वारका शहर और ऐसे मामलों की जांच के लिए काम कर रहे हैं.
कांग्रेस ने उठाए सवाल
बता दें कि रामसेतु को लेकर पहले से ही कई तरह की थ्योरी सामने आती रही हैं, बीजेपी लगातार कांग्रेस पर ये आरोप लगाती आई है कि वो रामसेतु के अस्तित्व को नहीं मानती. वहीं अब सरकार के संसद में जवाब से मामला और गरमा गया है. अब कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार को घेर रही है. कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने ट्विटर पर सरकार के इस जवाब को पोस्ट करते हुए लिखा, “सभी भक्त जन कान खोल कर सुन लो और आंखें खोल कर देख लो. मोदी सरकार संसद में कह रही है कि राम सेतु होने का कोई प्रमाण नहीं है.” पवन खेड़ा के अलावा तमाम विपक्षी नेता अब इसे सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं और कह रहे हैं कि बीजेपी की असली सच्चाई सामने आ गई है.
क्या है रामसेतु का विवाद
रामसेतु को लेकर कई पौराणिक कथाओं का हवाला देते हुए दावे किए जाते हैं. सबसे बड़ा दावा ये है कि भगवान राम ने इस सेतु को लंका पर चढ़ाई करने के लिए बनाया था. जिसमें बंदरों की सेना ने उनकी मदद की थी. वहीं मुस्लिम पक्ष की तरफ से दावा किया जाता है कि आदम ने इस पुल को बनाया था. अगर साइंटिफिक रिसर्च की बात करें तो एक्सपर्ट्स का कहना है कि समुद्र में उस जगह पानी उथला होने के चलते पत्थर दिखने लगे हैं. इसे लेकर साल 2007 में यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि ऐसे कोई भी प्रमाण नहीं है कि कथित रामसेतु को इंसानों ने बनाया था. इसे लेकर जमकर हंगामा हुआ था, जिसका जिक्र आज भी बीजेपी के कई नेता करते हैं.