बिलासपुर। कानन पेंडारी जू से अब 19 नील गाय की शिफ्टिंग बोमा तकनीक से की जाएगी। पहले बेहोशी की दवा देकर छोड़ने का निर्णय था। लेकिन यह प्रक्रिया सफल नहीं हुई। इसलिए जिस तकनीक से चीतलों को अचानकमार टाइगर रिजर्व छोड़ा गया, उसे ही अपनाने का निर्णय लिया गया है। इसमें खतरा भी कम है।
कानन पेंडारी जू में जिन वन्य प्राणियों की संख्या क्षमता से अधिक है, उन्हें कम करने के लिए दूसरे जू या फिर नजदीक की सेंचुरी व टाइगर रिजर्व में छोड़ा जा रहा है। हालांकि इसके पहले अनुमति ली जाती है। इसके तहत पहले 21 नील गाय को छोड़ने के लिए स्वीकृति मांगी गई। जब यह प्रक्रिया हो गई, तब 65 चीतलों को अचानकमार टाइगर रिजर्व में छोड़ने की सहमति मांगी गई। इसके लिए भी केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से हरी झंडी मिल गई।
चूंकि पहले अनुमति नील गाय को लेकर थी, इसलिए प्रबंधन ने इनकी शिफ्टिंग की शुरुआत की। लेकिन जू प्रबंधन दो ही नील गाय को कोरिया के गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व में छोड़ सका। इसके लिए बेहोशी की दवा दी गई थी। बाद में यह दवा भी बेअसर होने लगी। लिहाजा बैंगलुरू से दूसरी दवा मंगाई गई। बेहोशी की दवा कानन पेंडारी जू में आ भी चुकी है। लेकिन इस बीच चीतलों की शिफ्टिंग प्रारंभ कर दी गई। इसमें बेहोश करने के बजाय बोमा तकनीक अपनाया गया। यह तकनीक चीतलों के लिए बेहद सफल रहा है।
पूर्व में भी 50 से अधिक चीतलों को अलग- अलग जगहों पर छोड़ा गया था। 65 चीतलों को अचानकमार टाइगर रिजर्व के छपरवा रेंज में बनाए गए बाड़े में छोड़ दिया गया। लेकिन नील गाय की शिफ्टिंग अब तक अटकी है। बोमा तकनीक सुरक्षित है और नील गाय पर इसे लागू किया जा सकता है। इसलिए प्रबंधन यही तकनीक अपना रहा है। चूंकि नए साल भीड़ अधिक रहती है। इसलिए अधिकारी से लेकर कर्मचारी विशेष तैयारियों में जुटा हुआ। लिहाजा पहले दिन के बाद किसी भी दिन शिफ्टिंग करने का निर्णय लिया गया है।