नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट 2 जनवरी को जबरन मतांतरण को लेकर दायर एक नई याचिका पर सुनवाई करेगा। इस याचिका में धमकाकर, आर्थिक फायदे का लालच देकर इत्यादि तरीके से जबरन मतांतरण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र और राज्यों को कड़े कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
इस मामले पर न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की एक पीठ विचार कर सकती है। आपको बता दें कि अधिवक्ता आशुतोष कुमार शुक्ला ने मतांतरण से जुड़ी याचिका को सुप्रीम कोर्ट में दायर किया है। जिसमें धोखे से होने वाले मतांतरण पर रोक लगाने के लिए एक विशेष कार्यबल के गठन की भी मांग की है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि राज्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बाध्य है। ऐसे में किसी के ‘धर्म का प्रचार करने का अधिकार’ किसी व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने का अधिकार नहीं देता है।
याचिका में कहा गया है कि ट्राइबल बेल्ट में ज्यादातर निरक्षर क्षेत्र हैं। एक रिसर्च के आंकड़ों के मुताबिक, इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के बीच स्वास्थ्य, शिक्षा, आहार और पीने के पानी की स्थिति को खराब माना जाता है। साथ ही याचिका में कहा गया है कि यह क्षेत्र सामाजिक तौर पर काफी ज्यादा पिछड़े हैं।
‘मतांतरण रोकने के लिए उठाना चाहिए उचित कदम’
याचिका के मुताबिक, राज्य को समाज के सामाजिक रूप से, आर्थिक रूप से वंचित वर्गों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति से संबंधित मतांतरण को रोकने के लिए उचित कदम उठाया जाना चाहिए।
कोर्ट ने बताया था गंभीर मुद्दा
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण को एक गंभीर मुद्दा बताया था। दिसंबर की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जबरन धर्मांतरण संविधान के विरुद्ध है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर धोखे से, लालच देकर और डराने-धमकाने के जरिए धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो बहुत मुश्किल स्थिति पैदा हो जाएगी। कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी की मदद करना चाहते हैं तो आप करिए लेकिन इसका उद्देश्य मतांतरण नहीं होना चाहिए।