नईदिल्ली I मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में शनिवार (28 जनवरी) को भारतीय वायुसेना के दो लड़ाकू विमान (सुखोई 30 और मिराज 2000) नियमित प्रशिक्षण उड़ान के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गए. हादसे में मिराज फाइटर जेट के पायलट की मौत हो गई जबकि सुखोई के दो पायलट विमान से सुरक्षित निकलने में सफल रहे. हादसे में बच गए दो पायलटों में से एक को गंभीर चोटें आई हैं. हादसा किस वजह से हुआ, इसका पता लगाने के लिए जांच के आदेश दिए गए हैं.
हादसा कितना भनायक था, इसका अंदाजा मुरैना के जिलाधिकारी अंकित अस्थाना के बयान से लगता है. उन्होंने बताया कि दोनों विमानों का मलबा मुरैना के पहाड़गढ़ और राजस्थान के भरतपुर क्षेत्र में मिला. विमानों ने ग्वालियर में वायुसेना के हवाई अड्डे से उड़ान भरी थी.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह घटनाक्रम पर करीब से नजर रख रहे हैं. इस हादसे के बाद एक बार फिर ऐसे सवाल जन्म ले रहे हैं कि आखिर लड़ाकू विमान के पायलट इसके क्रैश होने पर कैसे अपनी जान बचाते हैं, वो कैसे विमान से बाहर निकलते हैं और कब उसमें फंस जाते हैं? आइए जानते हैं.
इजेक्शन सीट एक्टिवेट हो जाए तो बचती है जान
जानकारी के अनुसार, लड़ाकू विमान के कॉकपिट में पायलट की सीट बेहद खास तकनीक के साथ डिजाइन की जाती है. इसे टेक्निकल टर्म में इसे ‘इजेक्शन सीट’ या ‘इजेक्टर सीट’ कहा जाता है, जो ‘रॉकेट पावर सिस्टम’ पर आधारित होती है. आसान भाषा में ऐसे समझिए के हादसे के वक्त पायलट के पास इससे बचने के लिए बेहद कम समय होता है, कई बार कुछ एक सेकेंड में फैसला करना होता है. इस बेहद कम समय में पायलट को अपनी इजेक्शन सीट का रॉकेट पावर सिस्टम एक्टीवेट करना होता है. सिस्टम के एक्टीवेट होते ही इजेक्शन सीट विमान से अलग हो जाती है और उससे निकलकर रॉकेट की तरह करीब 30 मीटर की ऊंचाई तक जाती है. इसके बाद सीट पैराशूट की मदद से नीचे आती है. इस प्रकार सीट पर सवार पायलट की जान बचती है.
कब विमान में फंस जाता है पायलट?
पूरी प्रक्रिया इस लिहाज से बहुत जोखिम भरी होती है क्योंकि लड़ाकू विमान समुद्र तल से तीन से छह हजार मीटर की ऊंचाई तक उड़ते हैं और उनकी रफ्तार बेहद तेज होती है. ऐसे में रॉकेट पावर सिस्टम को एक्टीवेट कर इजेक्शन सीट के जरिये बाहर निकलना और फिर नीचे आने की प्रक्रिया में संतुलन बनाए रखने की भयंकर चुनौती सामने होती है. कई बार ऐसी परिस्थिति में सुरक्षित लैंडिंग न हो पाने के कारण पायलट को गंभीर चोटें आती हैं, यहां तक कि उनकी रीढ़ की हड्डी तक डैमेज हो जाती है. लड़ाकू विमान के क्रैश होने के दौरान जब पायलट को इजेक्शन सीट के रॉकेट पावर सिस्टम को एक्टिवेट करने का भी समय नहीं मिलता है तो वह उसमें फंस जाता है और उसकी जान चली जाती है.