नईदिल्ली : पिछले दिनों सूरत की एक कोर्ट ने मोदी उपनाम मामले में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को दोषी करार दिया है। दो साल सजा सुनाए जाने के कारण उनकी लोकसभा सदस्यता भी खत्म हो गई। अब इस मामले पर राजनीति भी जमकर हो रही है। एक ओर जहां इस कार्रवाई को कांग्रेस लोकतंत्र की हत्या करार दे रही है तो दूसरी ओर भाजपा का दावा है कि कांग्रेस नेता के बयान से पूरे ओबीसी वर्ग का अपमान हुआ।
मोदी’ उपनाम चर्चा में क्यों है? किन-किन जातियों में आता है मोदी सरनेम? क्या सभी मोदी ओबीसी में आते हैं? कहां के मोदी ओबीसी में आते हैं? मोदी सरनेम वाले गुजरात के अलावा कहां रहते हैं? राहुल को जिस बयान पर सजा हुई, उसमें किनका नाम लिया था, और वो किन जातियों के हैं? आइये जानते हैं…
क्यों चर्चा में है मोदी उपनाम?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हुई सजा की वजह से इस वक्त मोदी उपनाम चर्चा में है। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी सरनेम पर टिप्पणी की थी। इसी टिप्पणी के मामले में बीते 23 मार्च को सूरत की एक अदालत ने राहुल को दो साल की सजा सुनाई। इसके अगले दिन राहुल की लोकसभा सदस्यता खत्म कर दी गई।
दरअसल, इस बयान को लेकर भाजपा विधायक व गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया था। उनका आरोप था कि राहुल ने अपनी इस टिप्पणी से समूचे मोदी समुदाय का अपमान किया है।
फैसले के बाद कैसे हो रही राजनीति?
राहुल की सांसदी जाने के बाद कांग्रेस हमलावर है। पार्टी नेताओं का कहना है सरकार लोकतंत्र की हत्या कर रही है। वहीं, राहुल को सजा होने के बाद से भाजपा लगातार इसे ओबीसी के अपमान से जोड़ रही है। बुधवार को भी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का अपमान करने की कोशिश में राहुल गांधी पूरे ओबीसी वर्ग का अपमान कर गए। यह पहली बार नहीं है जब गांधी परिवार ने दलित या पिछड़े वर्ग के लोगों का अपमान करने की कोशिश की है। जब एक आदिवासी समुदाय से आने वाली महिला राष्ट्रपति बनीं थी, तो कांग्रेस के सदस्यों ने गांधी परिवार के निर्देश पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का भी अपमान किया था। भाजपा का कहना है कि वह इस मामले में राहुल के खिलाफ पूरे देश में आंदोलन करेगी।
तो क्या सभी ‘मोदी’ सरनेम वाले लोग ओबीसी होते हैं?
मोदी सरनेम वाले लोग प्रमुख रूप से गुजरात और कुछ संख्या में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार में रहते हैं। गुजरात में बहुत से लोग अपने नाम के आगे ‘मोदी’ लगाते हैं। इस उपनाम का उपयोग हिंदू, मुस्लिम और पारसी करते हैं। वैष्णव (बनिया), खरवास (पोरबंदर के मछुआरे) और लोहाना (व्यापारियों का एक समुदाय) सुमदाय में मोदी उपनाम वाले लोग मिलते हैं। इनमें से सभी पिछड़ी जाति में नहीं आते।
पारसी, वैष्णव, लोहाना आदि समुदाय के लोग मोदी सरनेम का इस्तेमाल करते हैं लेकिन, ये पिछड़े वर्ग में नहीं आते। इस उपनाम का उपयोग अग्रवाल समुदाय से आने वाले मारवाड़ी भी करते हैं। इन्हें हरियाणा के हिसार में अग्रोहा कहा जाता है। बाद में ये लोग हरियाणा के महेंद्रगढ़ और राजस्थान के झुंझुनू और सीकर जैसे जिलों में फैल गए।
वहीं, मोदी उपनाम का इस्तेमाल करने वाली कई उप-जातियां ऐसी भी हैं जो पिछड़े वर्ग में आती हैं। दरअसल, नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण के लिए ओबीसी की केंद्रीय सूची में ‘मोदी नाम से कोई समुदाय या जाति नहीं है। वहीं, गुजरात के ओबीसी के 104 समुदायों की केंद्रीय सूची में ‘घांची (मुस्लिम), तेली, मोध घांची(इसी समुदाय से प्रधानमंत्री मोदी आते हैं), तेली-साहू, तेली-राठौड़, तेली-राठौर को शामिल किया गया है। इनमें से कुछ समुदाय के लोग उपनाम मोदी का इस्तेमाल करते हैं। ये सभी समुदाय परंपरागत रूप से तेल निकालने और व्यापार से जुड़े होते हैं। इसी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश में रहने वाले इन समुदायों के लोग आमतौर पर उपनाम गुप्ता और मोदी का भी उपयोग करते हैं।
ओबीसी की केंद्रीय सूची में सूचीबद्ध बिहार के 136 समुदायों में, कोई ‘मोदी’ नहीं है। इसी तरह केंद्रीय ओबीसी सूची में राजस्थान के 68 समुदायों की सूची में 51वीं प्रविष्टि के रूप में ‘तेली’ है, लेकिन ‘मोदी’ के रूप में कोई समुदाय सूचीबद्ध नहीं है। यहां भी तेली समुदाय के कुछ लोग मोदी उपनाम का इस्तेमाल करते हैं।
गुजरात में इन समुदायों को ओबीसी सूची में कब शामिल किया गया?
ओबीसी आरक्षण लागू होने के बाद 1993 में ओबीसी की पहली केंद्रीय सूची अधिसूचित की गई थी। 1999 में मुस्लिम घांची समुदाय को अन्य राज्यों के कुछ अन्य समान समुदायों के साथ ओबीसी की केंद्रीय सूची में जोड़ा गया। इसके बाद, 2000 की एक अधिसूचना द्वारा, गुजरात के अन्य समुदायों जैसे ‘तेली’, ‘मोध घांची’, ‘तेली साहू’, ‘तेली राठौड़’ और ‘तेली राठौर’ को ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल किया गया।
प्रधानमंत्री की जाति को ओबीसी में शामिल करने पर क्या विवाद है?
प्रधानमंत्री मोध घांची जाति से आते हैं। विपक्षी दलों के नेता कई बार आरोप लगा चुके हैं कि प्रधानमंत्री फेक ओबीसी हैं। 2013 में जब मोदी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया तब कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मोदी वैश्य समुदाय से आते हैं। जो सामान्य वर्ग में आता है। घांची जाति के अति अमीर होने की वजह से मोध टाइटल दिया गया। जैसे मोध ब्राह्मण, मोध बनिया। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मोदी ने मुख्यमंत्री बनने के चार महीने बाद एक जनवरी 2002 में ‘मोध घांची’ जाति को ओबीसी में शामिल किया गया। कांग्रेस के साथ ही जदयू नेता ललन सिंह और बसपा प्रमुख मायावती भी अलग-अलग मौकों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फर्जी पिछड़ा कह चुके हैं।
कांग्रेस के आरोपों के जवाब में तत्कालीन गुजरात सरकार के मंत्री नितिन पटेल ने सरकारी दस्तावेज पेश किए। इसमें बताया गया कि गुजरात सरकार के समाज कल्याण विभाग ने 25 जुलाई 1994 को मोध घांची समुदाय को ओबीसी में शामिल किया था। जिस जाति से नरेंद्र मोदी आते हैं। इस अध्यादेश में मोध घांची के साथ कुल 36 जातियों को ओबीसी में शामिल किया गया था। 36 जातियों की सूची में मोध घांची जाति का जिक्र 25(B) नंबर पर था।
राहुल को जिस बयान पर सजा हुई, उसमें किनका नाम लिया था, और वो किन जातियों के?
2019 लोकसभा चुनाव के लिए कर्नाटक के कोलार में एक रैली में राहुल गांधी ने मोदी उपनाम को लेकर टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था, कैसे सभी मोदी उपनाम वाले सभी चोर हैं? इस दौरान उन्होंने नीरव मोदी, ललित मोदी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी जिक्र किया था।
राहुल ने जिन तीन नामों का जिक्र किया उनमें आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी का संबंध मारवाड़ी समुदाय से है। जबकि भगोड़ा हीरा कारोबारी नीरव मोदी जैन धर्म से ताल्लुक रखता है। जबकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते हैं।