नईदिल्ली : देशद्रोह कानून पर रोक लगाने के करीबन एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट औपनिवेशिक युग के इस दंडात्मक कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई करेगा। उम्मीद जताई जा रही है कि सोमवार को होने वाली सुनवाई के दौरान विवादास्पद दंड कानून की समीक्षा के संबंध में अब तक उठाए गए कदमों के बारे में केंद्र सरकार शीर्ष अदालत को जानकारी दे सकती है। इस कानून को लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा दायर याचिका सहित कई अन्य याचिकाएं भी शीर्ष कोर्ट में लंबित हैं।
इससे पहले, बीते साल 31 अक्तूबर को शीर्ष अदालत ने देशद्रोह कानून की समीक्षा के लिए सरकार से उचित कदम उठाने के लिए कहा था। इसके लिए सरकार को अदालत ने अतिरिक्त समय भी दिया था। साथ ही देशद्रोह कानून और एफआईआर के परिणामी पंजीकरण पर रोक लगाते हुए शीर्ष कोर्ट अपने 11 मई के निर्देश को बढ़ा दिया था।
बीते साल अक्तूबर में केंद्र सरकार ने पीठ से समीक्षा के लिए कुछ और समय मांगते हुए कहा था कि संसद के शीतकालीन सत्र में भी इसपर कुछ हो सकता है।
बीते साल कोर्ट ने लगाई थी रोक
गौरतलब है कि बीते साल इस कानून को ताक पर रखते हुए तत्कालीन सीजेआई एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश दिया था कि नई प्राथमिकी दर्ज करने के अलावा, इस कानून के तहत दर्ज मामलों में चल रही जांच, लंबित परीक्षण के साथ ही राजद्रोह कानून के तहत सभी कार्यवाही स्थगित रहेंगी। पीठ ने कहा था कि “आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) की कठोरता वर्तमान सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं है। पीठ ने इसके इस प्रावधान पर पुनर्विचार की अनुमति दी थी। पीठ ने कहा था कि हम उम्मीद करते हैं कि जब तक प्रावधान की फिर से जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक सरकारों द्वारा कानून के पूर्वोक्त प्रावधान के उपयोग को जारी नहीं रखना उचित होगा।
कानून में क्या
आईपीसी 124ए के अनुसार, कोई व्यक्ति अगर कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ शब्दों को बोलकर, लिखकर, इशारे से, दिखने योग्य संकेत या किसी अन्य तरह से असंतोष भड़काता है या ऐसी कोशिश करता है या सरकार के खिलाफ लोगों में घृणा, अवज्ञा या उत्तेजना पैदा करता या ऐसा करने की कोशिश करता है, तो इसे देशद्रोह मान कर हुए उसे तीन वर्ष कारावास से लेकर उम्रकैद तक और जुर्माने की सजा दी जा सकती है।
कानून के कई शब्दों का आईपीसी में भी स्पष्टीकरण
- असंतोष में दुश्मनी व निष्ठाहीनता की भावनाएं शामिल हैं।
- वे आक्षेपपूर्ण टिप्पणियां देशद्रोह नहीं होंगी, जिनमें घृणा, अवज्ञा या असंतोष भड़काने या ऐसी कोशिश किए बिना सरकार के कामों को कानूनी रास्ते से बदलने की बात हो।
- वे टिप्पणियां भी देशद्रोह नहीं होंगी, जिनमें सरकार के शासकीय व अन्य कामों के खिलाफ नापसंदगी दर्शाई जाए लेकिन घृणा, अवज्ञा या असंतोष भड़काने या ऐसी कोशिश न हो।
जन व्यवस्था बिगाड़ने वाले वक्तव्य देशद्रोह माने
- 1951 में पंजाब हाईकोर्ट और 1959 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धारा 124ए को असांविधानिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जड़ें काटने वाला माना।
- 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में कहा कि सरकार या राजनीतिक दलों के खिलाफ दिए वक्तव्य गैर-कानूनी नहीं होते। लेकिन जन व्यवस्था बिगाड़ने वाले वक्तव्य देशद्रोह की श्रेणी में आएंगे।
भूलवश दस साल नहीं बन सका था कानून
देशद्रोह कानून का इतिहास रोचक है। विधि आयोग की 2018 की रिपोर्ट बताती है कि 1837 में आईपीसी का ड्राफ्ट बनाने वाले अंग्रेज अधिकारी थॉमस मैकॉले ने देशद्रोह कानून को धारा 113 में रखा। लेकिन किसी भूलवश इसे 1860 में लागू आईपीसी में शामिल नहीं किया जा सका। 1870 में विशेष अधिनियम 17 के जरिये सेक्शन 124ए आईपीसी में जोड़ा गया। यह ब्रिटेन के ‘देशद्रोह महाअपराध अधिनियम 1848’ की नकल था, जिसमें दोषियों को सजा में तीन साल की कैद से लेकर हमेशा के लिए सागर पार भेजना शामिल था