बेंगलुरु। चांद से मिलने गया अपना यान उम्मीद के मुताबिक आगे बढ़ रहा है। चंद्रयान-3 की कक्षा फिर बदली गई है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक बार फिर कक्षा बदलने की प्रक्रिया (अर्थबाउंड-फाय¨रग-2) सफलतापूर्वक पूरा कर चंद्रयान-3 को पृथ्वी की अगली और बड़ी कक्षा में भेज दिया है।
इसरो ने कहा, ‘यान अब 41603 किलोमीटर X 226 किलोमीटर की कक्षा में है’। इसका मतलब यह है कि चंद्रयान-3 अब जिस कक्षा में है वह पृथ्वी से सबसे नजदीक होने पर 226 किलोमीटर और पृथ्वी से सबसे दूर होने पर 41603 किलोमीटर की दूरी पर है। मंगलवार को दोपहर दो से तीन बजे के बीच कक्षा फिर बदली जाएगी।
चंद्रयान-3 को प्रक्षेपण के बाद जिस कक्षा में डाला गया था वह पृथ्वी से सबसे नजदीक होने पर 170 किलोमीटर और पृथ्वी से सबसे दूर होने पर 36,500 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके बाद शनिवार को भी कक्षा बदली गई थी। बेंगलुरु में इसरो के विज्ञानी चंद्रयान-3 से जुड़े आनबोर्ड थ्रस्टर्स को फायर कर यान को पृथ्वी से दूर विभिन्न कक्षाओं में लेकर जाएंगे।
पृथ्वी की अलग-अलग कक्षाओं में चक्कर लगाते हुए चंद्रयान-3 चंद्रमा की ओर बढ़ेगा। इसके बाद चांद की कक्षा में चक्कर लगाते हुए यान उसकी निकटतम कक्षा में पहुंचेगा और वहां से लैंडर-रोवर चांद की सतह की ओर बढ़ेंगे। 40 दिन के सफर के बाद 23 अगस्त को यान के साथ भेजा गया लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा। शुक्रवार दोपहर श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से दो बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान-3 रवाना हुआ था। लां¨चग के करीब 17 मिनट बाद फैट ब्वाय के नाम से लोकप्रिय एलवीएम3-एम4 राकेट ने यान को पृथ्वी की कक्षा में छोड़ दिया था।
यान में हैं तीन माड्यूल
चंद्रयान-3 में तीन माड्यूल हैं- प्रोपल्शन, लैंडर और रोवर। प्रोपल्शन माड्यूल में स्पेक्ट्रो पोलेरिमेट्री आफ हैबिटेबल प्लेनेट अर्थ (शेप) पेलोड है। यह चांद की कक्षा से पृथ्वी का अध्ययन करेगा। लैंडर में चांद की सतह व वातावरण के अध्ययन के लिए तीन पेलोड हैं। साथ ही इसके साथ अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का भी एक पेलोड है। रोवर में दो पेलोड हैं, जो लैंडिंग साइट के आसपास का अध्ययन करेंगे। प्रोपल्शन माड्यूल चांद की सतह से 100 किलोमीटर दूर से लैंडर-रोवर को छोड़ देगा। इसके बाद लैंडर अपने साथ रोवर को लेकर चांद की सतह पर लैंड करेगा और वहां रोवर उससे अलग हो जाएगा।