नईदिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) को खिंचाई की है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को बिना सुनवाई के हिरासत में रखने पर ईडी को फटकार लगाई है। शीर्ष अदालत ने केंद्रीय एजेंसी को पूरक आरोप पत्र दाखिल नहीं कर सकती और बिना सुनवाई के किसी व्यक्ति को जेल में नहीं रख सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने किसी आरोपी को डिफॉल्ट जमानत देने से इनकार करने और ऐसे व्यक्तियों को अनिश्चित काल तक जेल में रखने के लिए सप्लीमेंट्र चार्जशीट दाखिल करने पर ईडी से सवाल किया है। दरअसल, शीर्ष अदालत झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन के कथित सहयोगी प्रेम प्रकाश की डिफ़ॉल्ट जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें अगस्त 2022 में गिरफ्तार किया गया था।जिस पर जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने यह टिप्पणी झारखंड में कथित अवैध खनन से उत्पन्न मनी लॉन्ड्रिंग मामले में एजेंसी द्वारा चार पूरक आरोपपत्र दायर करने पर आपत्ति जताते हुए की।
ईडी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल एसवी राजू से जस्टिस खन्ना ने कहा कि, “हम आपको (ईडी) नोटिस दे रहे हैं। (कानून के तहत) आप मामले की जांच पूरी हुए बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकते। मुकदमा शुरू हुए बिना किसी व्यक्ति को हिरासत में नहीं रखा जा सकता। यह हिरासत के समान है और एक व्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित करता है। कुछ मामलों में, हमें इस मुद्दे को सुलझाना होगा”
यह देखते हुए कि किसी आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, “डिफॉल्ट जमानत का पूरा उद्देश्य यह है कि आप जांच पूरी होने तक गिरफ्तारी नहीं करते हैं। आप यह नहीं कह सकते कि मामले में जांच होने तक मुकदमा शुरू नहीं होगा। आप पूरक आरोपपत्र दाखिल करना जारी नहीं रख सकते और व्यक्ति को बिना सुनवाई के जेल में नहीं रख सकते।”
‘मुकदमा तब शुरू होना चाहिए जब गिरफ्तार किया जाए’
यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता 18 महीने से जेल में है और ईडी द्वारा एक के बाद एक पूरक आरोप पत्र दायर किए जा रहे हैं, न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, “यही बात हमें परेशान कर रही है। जब आप किसी आरोपी को गिरफ्तार करते हैं तो मुकदमा शुरू होना चाहिए। डिफॉल्ट जमानत आरोपी का अधिकार है और पूरक आरोपपत्र दायर करके इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।”