छत्तीसगढ़

मोदी-शाह या राहुल नहीं ये हैं इलेक्शन किंग, 36 सालों में 238 बार लड़े चुनाव, लोग कहते हैं- बड़ा वाला लूज़र…

नईदिल्ली : लोकतंत्र का महापर्व, दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव शुरू होने वाला है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , गृह मंत्री अमित शाह से लेकर विपक्षी नेता राहुल गांधी चुनाव प्रचार में जुटे हैं। इन सभी लोगों में एक बात आम है, ये सभी चुनाव जीतने की कोशिश में लगे हैं लेकिन यहां हम जिस शख्स की बात कर उनको ‘इलेक्शन किंग’ कहा जाता है और उनका ‘हार’ ही रहा है।

जी हां, आप हैरान मत होइए…ये सच है। तमिलनाडु के सेलम जिले के मेट्टूर के रहने वाले के. पद्मराजन किसी भी चुनाव में जीतने के लिए नहीं बल्कि हारने के लिए खड़े होते हैं। लेकिन फिर भी दुनिया इन्हें ‘इलेक्शन किंग’ के नाम से जानती है।

कौन हैं के. पद्मराजन

65 वर्षीय टायर मरम्मत की दुकान के मालिक के. पद्मराजन 1988 से यानी 36 सालों से चुनाव लड़ रहे हैं, वह अब तक 238 चुनाव लड़ चुके हैं। के. पद्मराजन के नाम भारत में सर्वाधिक चुनाव लड़ने का रिकॉर्ड है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि इसमें से वह अब तक एक बार भी जीते नहीं हैं। के. पद्मराजन के चुनावी हार को देखते हुए उन्हें जनता ‘world Biggest election Loser’ का भी तमगा दे चुकी है। के. पद्मराजन साइकिल मरम्मत की दुकान चलाते हैं। उनकी स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं हुई थी, तब से वह साइकिल मरम्मत का काम कर रहे हैं। हालांकि बिना कॉलेज गए उन्होंने डिस्टेंस एजुकेशन से इतिहास में ग्रेजुएशन की डिग्री ली है।

के. पद्मराजन का परिवार भी उनके साथ हैं। के. पद्मराजन के बेटे श्रीजेश एमबीए ग्रेजुएट हैं।के. पद्मराजन 2004 में लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़े थे। 2014 में वडोदरा में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी वह चुनौती दे चुके हैं। पद्मराजन 2019 में राहुल गांधी के खिलाफ वायनाड से भी चुनाव लड़े चुके हैं।

के. पद्मराजन के नाम सबसे ज्यादा चुनाव लड़ने का रिकॉर्ड

के. पद्मराजन ने पास चुनाव लड़ने का एक असाधारण ट्रैक रिकॉर्ड है, उन्होंने पंचायत चुनाव और यहां तक कि राष्ट्रपति चुनाव सहित 238 चुनावों में हिस्सा लिया है, लेकिन कभी जीत नहीं पाए। के. पद्मराजन अब तक 12 अलग-अलग राज्यों में, अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ चुके हैं।

के. पद्मराजन फिर से इस लोकसभा चुनाव-2024 में भी चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इस बार के. पद्मराजन धर्मपुरी निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में होंगे। के. पद्मराजन अपनी कई चुनावी हार के बावजूद विचलित नहीं होते हैं। के. पद्मराजन का मानना है कि लोकतंत्र में हर किसी को चुनाव लड़ने का अवसर मिलना चाहिए। उन्होंने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि, ‘सच बटाऊँ तो मेरा लक्ष्य और भी चुनाव हारना है।’ के. पद्मराजन का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और दिल्ली बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में चुनावी इतिहास के सबसे असफल उम्मीदवार के रूप में दर्ज है।

वाजपेयी से लेकर जयललिता तक के खिलाफ लड़ चुके हैं चुनाव

के. पद्मराजन ने कहा है कि, ”अब तक, मैंने अटल बिहारी वाजपेयी, पीवी नरसिम्हा राव, जे जयललिता, एम करुणानिधि, एके एंटनी, वायलार रवि, बीएस येदियुरप्पा, एस बंगारप्पा, एसएम कृष्णा, विजय माल्या, सदानंद गौड़ा और अंबुमणि रामदास के खिलाफ चुनाव लड़ा है। मैं कुल मिलाकर छह बार राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ चुका हूं। मैं जीतना नहीं चाहता, बल्कि केवल हारना चाहता हूं, क्योंकि आप जीत का स्वाद केवल एक निश्चित समय के लिए ही चख सकते हैं, लेकिन आप हमेशा के लिए हार झेल सकते हैं।”

कहां से आता है के. पद्मराजन के पास चुनाव लड़ने का पैसा?

के. पद्मराजन ने कहा है कि अब तक जो 239 चुनाव लड़े हैं, उसका सारा खर्चा साइकिल मरम्मत की दुकान से जो कमाई होती है, उससे की है। के. पद्मराजन के अब तक चुनाव लड़ने में लगभग 1 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। के. पद्मराजन अपने अभियान के लिए अपनी टायर मरम्मत की दुकान से होने वाली कमाई का इस्तेमाल करते हुए अपने उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध हैं। यहां तक कि 1991 में नरसिम्हा राव के खिलाफ चुनाव लड़ते समय आंध्र प्रदेश में अपहरण की घटना ने भी के. पद्मराजन के उत्साह को कम नहीं किया था। पद्मराजन लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बारे में ज्यादा से ज्यादा जागरूकता फैलाने की कोशिश में हैं।