छत्तीसगढ़

कैंसर के मरीजों को कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों से बचाने की तकनीक विकसित, पीड़ितों को मिलेगा लाभ

गुवाहाटी। कैंसर के मरीजों के लिए बड़ी राहत वाली खबर है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने कैंसर के मरीजों को कीमोथेरेपी दवाओं के दुष्प्रभावों से बचाने की तकनीक विकसित की है। इस तकनीक के जरिये दी जाने वाली दवा सीधे कैंसर से संक्रमित कोशिकाओं (सेल्स) को ही खत्म करती है, जिससे दुष्प्रभाव न के बराबर होता है। आइआइटी गुवाहाटी के रसायन शास्त्र विभाग के प्रोफेसर देबासिस मन्ना इसे स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि कीमोथेरेपी दवा देने की तकनीकि के विकास में शोधकर्ताओं को बातों पर ध्यान देना था। पहली यह कि दवा सीधे कैंसर कोशिकाओं को प्रभावित करे और दूसरी यह कि बाहर से नियंत्रण हो ताकि आवश्यकता के अनुसार जब जरूरत हो दवा को संक्रमित कोशिकाओं पर छोड़ा जाए।

मौजूद दवा से स्वस्थ कोशिकाएं भी होती हैं खत्म

संस्थान की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि अभी उपलब्ध कीमोथेरेपी दवाओं के साथ समस्या यह है कि वो संक्रमित कोशिकाओं के साथ ही दूसरी स्वस्थ कोशिकाओं को भी मार देती हैं। इसके चलते मरीजों को कई तरह की अवांछनीय दुष्प्रभावओं का शिकार होना पड़ता है।

दुष्प्रभाव को कम करने पर दुनियाभर में शोध

संस्थान ने कहा है कि वास्तव में, यह माना जाता है कि कैंसर की बीमारी से जितनी मौतें होती हैं लगभग उतनी ही मौतें कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव से चलते भी होती हैं। इसलिए, दुनियाभर में कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए शोध किए जा रहे हैं। जिन कुछ तकनीक पर काम किया जा रहा है उनमें दवाओं को सीधे संक्रमित कोशिकाओं तक पहुंचाने और उसके बाद संक्रमित कोशिकाओं और टिस्यू के लिए आवश्यकता के हिसाब से दवा जारी करना शामिल है।

कैसे काम करती है तकनीक

आइआइटी गुवाहाटी के शोधकर्ताओं को यही रणनीति तैयार करने में सफलता मिली है। शोधकर्ताओं ने ऐसे अणुओं का विकास किया है जो दवाओं को एकत्र कर स्वयं कैप्सूल में बदल जाते हैं और कैंसर से संक्रमित कोशिकाओं से चिपक जाते हैं। जब उन पर बाहर से इन्फ्रारेड प्रकाश डाला जाता है तो कैप्सूल की खोल टूट जाती है और उसमें एकत्र दवा कैंसर संक्रमित कोशिकाओं को सीधे अपनी चपेट में लेती है।

तकनीकी को उपचार में लेने की उम्मीद

शोधकर्ताओं का मानना है कि उनकी इस तकनीक को कैंसर के इलाज में शामिल करने की अनुमित मिलेगी। इस तकनीक से कीमोथेरेपी दवा देने से दूसरी स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान नहीं पहुंचेगा और इस तरह उनका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। शोध रिपोर्ट को मन्ना ने लिखा है, जिसमें सुभासिस डे, अंजलि पटेल और बिस्वा मोहन प्रुस्टी ने उनका सहयोग किया है।

कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने भी दिया सहयोग

शोधकार्य में आइआइटी गुवाहाटी के साथ ही कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों ने भी सहयोग दिया है। कई पत्रिकाओं में शोध नतीजे प्रकाशित : इस शोध के नतीजे प्रतिष्ठित पत्रिका ‘द रायल सोसाइटी आफ केमिस्ट्री’ के साथ ही ‘केमिकल कम्यूनिकेशंस’और ‘आर्गेनिक एंड बायोमालेक्यूलर केमिस्ट्री’ में प्रकाशित हुए हैं। आइआइटी गुवाहाटी की यह सफलता इस मायने में भी अहम क्योंकि भारत में 2025 तक कैंसर पीड़ितों की संख्या तीन करोड़ तक पहुंचने की आशंका जताई गई है।