छत्तीसगढ़

14 साल का बेगुनाह लड़का, जिसे 10 मिनट में सुना दी गई मौत की सजा, फिर 70 साल बाद सच आया सामने

नईदिल्ली I बीसवीं सदी का वो मामला जिसमें 14 साल के बच्चे को उस गलती के लिए सजा-ए-मौत दे दी गई, जो उसने कभी की ही नहीं थी. मामला अमेरिका का है. यहां दो बच्चियों की हत्या के आरोप में 14 साल के बच्चे को बिना किसी जांच के उठा लिया गया. यहां तक कि उसे सफाई देने तक का मौका नहीं दिया गया. फिर कोर्ट ने भी उसे मौत की सजा सुनाने में देर नहीं की और मासूम को इलेक्ट्रिक चेयर पर बिठा कर करंट देकर मार डाला गया. लेकिन 70 साल बात जब पता चला कि वो बच्चा निर्दोश था तो दुनिया को अमेरिका की इस गलती के लिए बहुत गुस्सा आया. इस मामले ने एक तरह से अमेरिका की न्याय प्रणाली पर सवाल उठा दिए थे. चलिए जानते हैं इस पूरे मामले को…

23 मार्च 1944 का दिन..जगह कैरोलिना शहर का अलकोलू इलाका. यहां अफ्रीकी-अमेरिकी मूल का 14 वर्षीय जॉर्ज स्टिनी (George Stinney) परिवार के साथ रहता था. जॉर्ज के बारे में कहा जाता है कि वह थोड़ा लड़ाकू और दबंग मिजाज का लड़का था. हमेशा गुस्से में रहता और ज्यादा किसी से बात नहीं करता. 23 मार्च 1944 को जॉर्ज अपनी छोटी बहन कैथरीन के साथ घर के पास खेल रहा था.

खास फूल की तलाश कर रही थीं दो बहनें
तभी वहां साइकिल पर सवार दो लड़कियां आकर रुकीं. दोनों बहनें थी. एक का नाम बैटी (11) और मैरी (8) था. दोनों ने जॉर्ज और कैथरीन को देखा तो उनके पास गईं. बहनों ने दोनों को बताया कि वे एक खास फूल की तलाश कर रही हैं. लेकिन काफी देर से उन्हें वह फूल नहीं मिल रहा. तब जॉर्ज ने कहा कि मुझे पता है वो फूल कहां मिलेगा. फिर वह लड़कियों की मदद के लिए उनके साथ चल पड़ा. उसकी बहन कैथरीन भी उनके साथ थी. फिर बाद में जॉर्ज और कैथरीन वापस घर आ गए.

घर नहीं लौटीं दोनों बहनें
यहां बता दें, जॉर्ज अफ्रीकी मूल का था इसलिए वह अश्वेत था. जबकि बैटी और मैरी श्वेच थीं. और उस समय अमेरिका में गोरे-काले का काफी भेदभाव था. उधर शाम हो गई लेकिन बैटी-मैरी अब तक घर नहीं पहुंची थीं. दोनों के माता-पिता परेशान हो गए. तब उन्हें पता लगा कि लड़कियों को अंतिम बार जॉर्ज और कैथरीन के साथ देखा गया था. बैटी-मैरी के माता-पिता जॉर्ज के घर पहुंचे और उनसे बेटियों के बारे में पूछा. जॉर्ज ने बताया कि वे लोग उन्हें फूल वाली जगह छोड़कर वापस घर आ गए थे. इसके बाद उन्हें नहीं पता कि वे दोनों कहां गईं. जॉर्ज के पिता भी बैटी-मैरी के ढूंढने के लिए उनके माता-पिता के साथ निकलते हैं. लेकिन दोनों कहीं नहीं मिलतीं.

जॉर्ज और जॉनी को उठा ले गई पुलिस
अगले दिन सुबह रेलवे ट्रैक के किनारे बैटी-मैरी के शव मिले. दोनों का सिर बुरी तरह से फटा हुआ था. ऐसा लग रहा था जैसे किसी भारी चीज से दोनों पर हमला किया गया हो. मामला पुलिस तक पहुंचा. पुलिस ने तफ्तीश शुरू की. तफ्तीश के दौरान पुलिस को पता लगा कि अंतिम बार वे दोनों जॉर्ज और कैथरीन के साथ देखी गई थीं. इसी के बाद कैरोलीना पुलिस जॉर्ज के घर पहुंची. फिर वहां से जॉर्ज और उसके भाई जॉनी को उठाकर पुलिस स्टेशन ले गई. कई घंटे दोनों से पूछताछ की गई. जिसके बाद जॉनी को तो छोड़ दिया गया. लेकिन जॉर्ज को हिरासत में रखा गया. फिर कुछ ही घंटों के बाद पुलिस ने बयान जारी किया कि जॉर्ज ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है.

पुलिस ने सुनाई कहानी
पुलिस के बयान के मुताबिक, जॉर्ज बैटी के साथ जबरदस्ती करना चाहता था. लेकिन उसके साथ मैरी भी थी. इसलिए उसने सोचा कि पहले मैरी को मार देता हूं. फिर बैटी के साथ जबरदस्ती करूंगा. इसके बाद जॉर्ज जैसे ही मैरी के सिर पर बड़े से पत्थर से वार करने लगा, बैटी बीच में आ गई. तीनों के बीच हाथापाई शुरू हो गई. दोनों लड़कियां जब जॉर्ज पर हावी होने लगीं तब उसने पास पड़े लोहे के बीम से दोनों लड़कियों के सिर पर वार कर दिया. दोनों की मौत हो गई और जॉर्ज वहां से घर चला गया.

लिखित स्टेटमेंट में नहीं थे जॉर्ज से साइन
इसी बीच, उस शहर के काउंटी डिप्टी अफसर मिस्टर एसएस न्यूमैन ने लिखित स्टेटमेंट दिया कि जॉर्ज ने अपनी गलती मान ली है. हालांकि, उस लिखित स्टेटमेंट में कहीं भी जॉर्ज के साइन नहीं थे. फिर भी जॉर्ज तीन महीने तक हिरासत में रहा. इसी बीच जब ये बात पूरे शहर में फैली तो जॉर्ज के पिता को नौकरी से निकाल दिया गया. उनके घर को भी खाली करवा दिया गया. वहीं, इस पूरे ट्रायल के दौरान जॉर्ज के परिवार वालों को उससे मिलने तक नहीं दिया गया.

जॉर्ज के साथ किया गया भेदभाव
करीब 80 दिन तक यह मामला चला. फिर ट्रायल शुरू हुआ. हैरानी की बात इसमें यह रही कि एक ही दिन में कोर्ट में ज्यूरी का प्रोसेस पूरा कर लिया गया. कहा जाता है कि ज्यूरी के मेंबर्स जो थे वे सभी गोरे थे. इसलिए यहां भी जॉर्ज के साथ भेदभाव किया गया. ज्यूरी मेंबर आनन-फानन में तय किए गए. फिर कार्रवाई शुरू हुई. कार्रवाई के दौरान ज्यूरी मेंबर्स ने जॉर्ज की एक भी बात नहीं सुनी. जो पुलिस ने उन्हें बताया बस उसी पर यकीन किया.

वकील ने अच्छे से नहीं लड़ा जॉर्ज का केस
कहा जाता है कि जो वकील जॉर्ज की तरफ से असाइन किया गया था वह पॉलिटिक्स में आना चाहता था. उसने ये सोचकर जॉर्ज का केस अच्छे से नहीं लड़ा क्योंकि उसे पता था कि गोरे लोगों का यहां दबदबा है. अगर वह उनके खिलाफ गया तो उसका पॉलिटिकल करियर खराब हो सकता है. इसलिए उसने पूरी सुनवाई के दौरान बस यह कहा कि जॉर्ज की उम्र को देखते हुए उसे एक वयस्क की तरह ट्रीट नहीं करना चाहिए. जबकि, उस समय के कानून के हिसाब से 14 साल की उम्र वालों को वयस्क माना जाता था. इसलिए उसकी ये दलील खारिज कर दी गई.

कोर्ट रूम में मौजूद थे सभी श्वेत लोग
ये भी कहा जाता है कि उस समय कोर्ट रूम में काफी लोग मौजूद थे, लेकिन सभी के सभी गोरे थे. किसी भी अश्वेत (Black) को कोर्ट में आने की अनुमति नहीं दी गई थी. केवल तीन लोगों को कोर्ट में गवाह के रूप में बुलाया गया था. पहला शख्स- जिसने लड़कियों की लाश देखा. वो भी गोरा था. बाकी दो डॉक्टर जिन्होंने लड़कियों का पोस्टमार्टम किया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आया था कि दोनों में से किसी भी लड़की के साथ रेप नहीं हुआ था.

ढाई घंटे चला ट्रायल
जॉर्ज की तरफ से कोई गवाह पेश नहीं किया गया. ना ही जॉर्ज से क्रॉसचेक किया गया और ना ही बचाव में कुछ बोलने का मौका दिया गया. ढाई घंटे के ट्रायल के बाद ज्यूरी ने आधे घंटे का ब्रेक लिया. फिर उन्होंने अपना फैसला सुनाया. फैसला जज के पास आया और महज 10 मिनट के अंदर जॉर्ज को दोषी मानते हुए मौत की सजा सुना दी गई.

16 जून 1944 का दिन, जॉर्ज की मौत
उस समय सजा-ए-मौत का तरीका इलैक्ट्रिक चेयर पर बैठाकर करंट देकर मारना था. हालांकि, इस सजा के खिलाफ भी ऊपरी अदालत में अपील नहीं करने दी गई. जॉर्ज के परिवार को धमका कर शहर से बाहर पहले ही कर दिया गया था. उन्हें जब सजा का पता चला तो गवर्नर से मर्सी की अपील की. लेकिन गवर्नर ने भी उनकी अपील को ठुकरा दिया. फिर 16 जून 1944 को सुबह 5 बजे जॉर्ज को एक कमरे में ले जाया गया. वहां इलेक्ट्रिक चेयर पर उसे बैठाया गया. उसके हाथ-पांव बांधे गए. लेकिन वह चेयर पर फिट नहीं बैठ रहा था. क्योंकि उसकी हाइट कम थी. फिर आनन-फानन में वहां पड़ी किताबों को चेयर पर रखकर जॉर्ज को उस पर बैठाया गया. ताकि उसका सिर लोहे की कैप तक पहुंच सके. फिर जैसे ही उसे लोहे की कैप पहनाई उसे 5 हजार 380 वाट करंट का जोरदार झटका दिया गया. चंद सेकंड में जॉर्ज की मौत हो गई.

70 साल बाद मामले में चौंकाने वाला खुलासा
फिर साल 2013 में कुछ लोगों ने इस केस में दिलचस्पी दिखाई और रिसर्च शुरू किया. उन्हें लगा कि जॉर्ज के साथ नाइंसाफी हुई है. इसलिए 70 साल बाद जनवरी 2014 में फिर से केस को ऑपन किया गया. फिर जब जांच शुरू हुई तो ऐसी बात खुलकर सामने आई जिससे सभी के होश उड़ गए. दरअसल, लड़कियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया था कि दोनों पर किसी भारी चीज से हमला किया गया था. वो भी जोर-जोर से कई बार, जिससे उनकी मौत हुई. उस समय पुलिस ने उस लोहे के बीम को कस्टडी में रखा था जिससे दोनों पर वार किया गया था. अब जब दोबारा उस चीज की जांच हुई तो पता चला कि उस लोहे की रोड का वजन 20 किलो था.

बेकसूर निकला जॉर्ज
अब यहां सवाल उठा कि इतना छोटा बच्चा इतने भारी बीम से लड़कियों पर ताबड़तोड़ कई वार कैसे कर सकता है? इसके लिए जॉर्ज की कदकाठी और उम्र के कुछ बच्चों से इसका डमी करवाकर देखा गया. फिर ये माना गया कि यह मुमकिन ही नहीं है कि जॉर्ज ने उन पर वार किए होंगे. इसी के साथ दूसरी तरफ, उस जज ने भी मान लिया था कि उन्होंने फैसले में गलती की थी. उस पूरी कार्रवाई के दौरान जॉर्ज के साथ नाइंसाफी हुई थी. बाद में दिसंबर 2014 में इस बात पर मुहर लगा दी गई कि जॉर्ज निर्दोष था.

कोर्ट में जब यह नया फैसला आया तो जॉर्ज के भाई-बहन जोकि अब काफी बूढ़े हो चुके थे, फूट-फूट कर रोने लगे. उन्होंने कहा कि हमारे भाई को उस गुनाह की सजा मिली जो उसने कभी किया ही नहीं था. बहन कैथरीन ने ये भी कहा कि उस समय वह जॉर्ज के साथ ही थी. उसने पुलिस वालों को बताया भी था. लेकिन तब किसी ने भी उसकी बात नहीं सुनी.