नई दिल्ली। खिलाड़ी तो राजनीतिक दल होते हैं लेकिन अक्सर चुनाव के बाद कई दलों की ओर से चुनाव आयोग को गुनहगार ठहराया जाता है। अब चुनाव आयोग भी ऐसे आरोपों को लेकर आक्रामक होने की तैयारी में है। राजनीतिक बयानबाजी पर चुप्पी साधने की बजाय सवाल जवाब करेगा और आरोपों के मद्देनजर तथ्य न पेश करने पर दलों या संबंधित नेताओं के खिलाफ कार्रवाई भी करेगा। इस बाबत मंथन तेज है। चुनाव सुधारों को लेकर तेजी से जुटे आयोग ने यह तेजी तब दिखाई है, जब उसके खिलाफ तथ्यहीन व बेबुनियाद आरोपों बढ़ने लगे है। खासकर सोशल मीडिया के जरिए तथ्यहीन बातों को फैलाकर उसकी छवि को कठघरे में खड़ा किया जाता है।
चुनाव आयोग ने उठाया कदम
सूत्रों की मानें तो आयोग ने इस दिशा में काम भी शुरू कर दिया है। हाल ही में उसने अपनी इसी रणनीति के तहत सपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ओर से पार्टी कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में लगाए गए एक गंभीर आरोप को लेकर नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। जिसमें उन्होंने आयोग पर उत्तर प्रदेश में भाजपा को जिताने का आरोप लगाया और कहा कि सभी विधानसभा से मुस्लिम और यादव मतदाताओं के करीब बीस-बीस हजार वोट वोटर लिस्ट से काट दिए गए थे।
गलत आरोप लगाने वाले पर होगी कार्रवाई
आयोग ने मीडिया में उनके इन बयानों के आने के बाद इसे संज्ञान लिया और उन्हें नोटिस जारी कर इन आरोपों के प्रमाण मांगे है। आयोग से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक तथ्यपरक आरोपों या शिकायतों का सम्मान है। वह खुद से लोगों को इसे लेकर सी-विजिल जैसा प्लेटफार्म मुहैया करा रहा है, लेकिन जो लोग सिर्फ दुष्प्रचार या आयोग की छवि को खराब करने के लिए कुछ भी आरोप लगा रहे है, वह गलत है। आयोग का मानना है कि यदि वह अपनी छवि बिगाड़ने वाले आरोपों पर चुप रहे तो इससे लोगों का लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भरोसा भी कमजोर होगा।
चुनाव आयोग का मानीटरिंग सिस्टम पर जोर
सूत्रों के मुताबिक आयोग इसे लेकर एक मॉनीटरिंग सिस्टम खड़ा करने में जुटा है। जिसमें इस तरह के गलत और झूठे आरोपों पर नजर रखी जाएगी। आयोग से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक लोक प्रतिनिधित्व कानून (आरपी एक्ट) के तहत लोगों के बीच कटुता बढ़ाने वाले जानबूझकर व झूठे बयानों में जुर्माना और आपराधिक कार्रवाई दोनों हो सकती है। इसके साथ ही चुनाव के दौरान आयोग की ओर से राजनीतिक दलों को स्टार प्रचारक और वाहन आदि की सुविधा भी खत्म की जा सकती है। उनकी भविष्य की रैलियों व प्रचार पर भी कुछ प्रतिबंध की बात सोची जा रही है।
व्यवस्थाओं को पारदर्शी बनाने पर जोर
इसके अलावा आयोग अपनी सारी व्यवस्थाओं को ज्यादा से ज्यादा पारदर्शी बनाने में जुटा है। शिवसेना पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह से जुड़े विवाद में भी आयोग ने पूरी पारदर्शिता बरती। साथ ही उसके दोनों गुटों की ओर से मांगे जा रहे धार्मिक चिन्ह की मांग को खारिज कर दिया। साथ ही फैसला भी दिया कि किसी भी पार्टी को धार्मिक जुड़ाव रखने वाले कोई भी चिन्ह नहीं अब नहीं दिए जाएंगे। साथ ही जिन दलों के पास 2005 से पहले से ऐसे चुनाव चिन्ह है वह बरकरार रहेंगे।