कुशीनगर। कुशीनगर के टेकुआटार हरिहरपट्टी में मस्जिद और मंदिर साथ बने हैं। दोनों धर्मस्थल आज के दौर में सांप्रदायिक भाईचारे की मिसाल कहे जा सकते हैं। मंदिर में आरती की धुन मस्जिद में सुनाई देती है तो मस्जिद से अजान की आवाज मंदिर में। देखने सुनने वाले कहते हैं, यही है असली हिंदुस्तान।
हर सुबह मौलवी और पुजारी करते हैं आपस में अभिवादन
हर सुबह मस्जिद के मौलवी मोहम्मद मासूम और मंदिर के पुजारी कन्हैया तिवारी आपस में एक दूसरे का अभिवादन कर कुशलक्षेम भी पूछते हैं। पुजारी कहते हैं भाई राम-राम तो मौलवी कहते हैं वालेकुम अस्सलाम। दोनों धर्मस्थलों के बीच 30 फुट का फासला है। मंदिर की आधारशिला 1960 में रखी गई तो पांच वर्ष बाद 1965 में मस्जिद का निर्माण हुआ। 62 वर्ष के इतिहास में कभी भी दोनों धर्म के लोगों के बीच आस्था को लेकर टकराव नहीं हुआ। गांव में दोनों धर्म के लोगों की समान आबादी है। खास बात यह है कि दोनों धर्म स्थलों के बनने में दोनों धर्म के लोगों ने एक दूसरे में मदद भी की है। एक दूसरे के पर्व या सामाजिक आयोजनों में दोनों धर्म के लोग हाथ बंटाते हैं, बढ़चढ़ कर हिस्सेदारी भी निभाते हैं।
क्या कहते हैं मौलवी और पुजारी
मंदिर के पुजारी कन्हैया तिवारी व मस्जिद के मौलवी मोहम्मद मासूम का कहना है कि एक पास दोनों धर्मों के आस्था स्थल होने से हमें कोई परेशानी नहीं है। अजान के समय मंदिर का माइक बंद हो जाता है तो मंदिर में आरती होती है। मस्जिद से अजान बिना माइक के पढ़ लिया जाता है।
मेरा गांव सामाजिक सद्भाव की मिसाल
70 वर्षीय महात्तम मद्धेशिया बताते हैं कि जब मंदिर-मस्जिद बने तब हम किशोर थे। उस मंदिर की नींव रखी गई तो मुस्लिम भाइयों ने ईंट दी और जब मस्जिद बनी तो हिंदू भाइयों ने सहयोग किया। आज तक कभी भी मंदिर-मस्जिद को लेकर गांव में कोई विवाद नहीं हुआ।
अन्य गांवों में होती इस समरसता की चर्चा
85 वर्षीय शौकत सिद्दीकी को दोनों धर्मों के लोग मानते हैं। वह कहते हैं कि मंदिर बनाने की जब योजना बनी तो मैं सबसे पहले आगे आया। लोगों से सहयोग मांगा और किया भी। यही काम मस्जिद बनने के समय हिंदू वर्ग के लोगों ने भी किया।