
रायपुर । प्राइमरी स्कूल के बच्चे अब सिलेबस की पढ़ाई मातृभाषा में कर सकेंगे। इसके लिए सीबीएसई ने गाइडलाइन जारी की है। इसमें कहा गया है कि 3 से 11 साल तक के बच्चों यानी प्री-प्राइमरी से कक्षा 5वीं तक की पढ़ाई मातृभाषा में कराई जाएगी।
प्राइमरी एजुकेशन के लिए मातृभाषा या रीजनल लैंग्वेज को इसी एकेडमिक सेशन 2025-26 से मीडियम ऑफ इंस्ट्रक्शन बनाना होगा। ये गाइडलाइंस नए नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क फॉर स्कूल एजुकेशन (एनसीएफएसई)-2023 के तहत जारी की गई है। पाठ्यक्रम संचालन के लिए स्कूलों में कमेटी का गठन भी किया जाएगा।
बच्चों को घर में बोली जाने वाली भाषा में पढ़ाने पर जोर दिया गया है। सर्कुलर में कहा गया है कि बच्चे अपने घर की भाषा में जल्दी और गहराई से कॉन्सेप्ट को समझ पाते हैं।
एग्जिक्यूट करने बनेगी कमेटी
बोर्ड ने सभी स्कूलों को निर्देश दिया है कि वे मई के आखिर तक स्कूल में एक कमेटी बनाएं जो एनसीएफएसई द्वारा जारी गाइडलाइन को एग्जिक्यूट करेंगे। यह कमेटी स्टूडेंट्स की मातृभाषा, संसाधन और करिकुलम पर कार्य करेगी। कमेटी का काम भाषा जरूरतों का आंकलन करना और टीचिंग मटेरियल उपलब्ध करना होगा।
प्री-प्राइमरी से कक्षा 2 तक की शिक्षा को कोफाउंडेशनल स्टेज कहा गया है। इसमें पढ़ाई मातृभाषा या घरेलू भाषा में अनिवार्य की गई है। कक्षा 3 से 5वीं तक के छात्रों के लिए भी मातृभाषा में पढ़ाई की सलाह दी गई है, हालांकि यहां माध्यम बदलने का विकल्प खुला रखा गया है।
हिंदी का प्रभाव ज्यादा, इसलिए इसी में होगी पढ़ाई
केंद्रीय विद्यालय क्रमांक-1 की डॉ अश्विनी चतुर्वेदी का कहना है कि प्री प्राइमरी व प्राइमरी के बच्चों को फाउंडेशन लिटरेसी एंड न्यूमेरेसी के तहत संख्या और साक्षरता यानी अक्षर बोध होना चाहिए। केंद्रीय विद्यालयों में भी प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई मातृभाषा में होगी। क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई के लिए टीचर्स को ट्रेनिंग भी दी जाएगी। स्कूल में कई भाषा-भाषी बच्चे हो सकते हैं, इसलिए देखा जाएगा कि क्षेत्र में उपयोग होने वाली भाषा कैसी है।
छत्तीसगढ़ी को भले ही राज्य भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं हो, लेकिन क्षेत्रीय भाषा के रूप में उपयोग किया जा सकता है। एनसीएफ गठित समिति बच्चों की मातृभाषा की पहचान करने और भाषा संसाधनों की मैपिंग करेगी। शुरुआती शिक्षा में मातृभाषा का उपयोग बच्चे की सीखने की क्षमता, आत्मविश्वास और समझ को बढ़ा सकता है।