नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों और संबंधित अधिकारियों को दया याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला लेने का निर्देश दिया। साथ ही कहा कि मौत की सजा का सामना कर रहे दोषी अपनी दया याचिकाओं पर निर्णय में हो रही अत्यधिक देरी का फायदा उठा रहे हैं। शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी। जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की।
”पीड़ितों को मिल सके न्याय”
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा अंतिम निष्कर्ष दिए जाने के बाद भी, दया याचिका पर फैसला करने में अत्यधिक देरी होने से मौत की सजा का उद्देश्य विफल हो जाएगा। इसलिए राज्य सरकारों या संबंधित अधिकारियों को दया याचिकाओं पर जल्द से जल्द फैसला लेना चाहिए, ताकि दोषी को भी अपने भाग्य का पता चल सके और पीड़ित को भी न्याय मिल सके।
7 साल 10 महीने तक लंबित रही दया याचिका
हाई कोर्ट ने मृत्युदंड को आजीवन कारावास में इस आधार पर बदल दिया था कि राज्य या फिर राज्य के राज्यपाल की ओर से आरोपी द्वारा दायर की गई दया याचिकाओं पर फैसला नहीं करने में एक असामान्य और अस्पष्ट देरी हुई थी, जिसे करीब सात साल 10 महीने तक लंबित रखा गया था।
एक स्थानीय अदालत ने कोल्हापुर में 13 बच्चों के अपहरण और 9 की हत्या के मामले में एक महिला और उसकी बहन को मौत की सजा सुनाई थी। जिसकी साल 2004 में हाई कोर्ट ने पुष्टि की थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 2006 में हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था। हालांकि, बाद में उनकी दया याचिकाओं को राज्यपाल ने 2013 में और राष्ट्रपति ने 2014 में खारिज कर दिया।
हाई कोर्ट के आदेश में कोई भी हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के दौरान अपराध की गंभीरता पर विचार किया जा सकता है।