नईदिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार (16 अप्रैल) को वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी VVPAT से क्रॉस-सत्यापन करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि वह 18 अप्रैल को उन याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखेगा, जिनमें VVPAT के साथ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों यानी ईवीएम में उनके द्वारा डाले गए वोटों को “रिकॉर्ड किए गए अनुसार गिना” जाने की मांग की गई है।
सुप्रीम कोर्ट में EVM के वोटों और VVPAT पर्चियों की 100% क्रॉस-चेकिंग की मांग को लेकर सुनवाई जारी है। कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आम चुनावों में मतदान के लिए पेपर बैलेट पर वापस जाने के मुद्दों और विवादों की ओर इशारा किया।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने मतदान को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए तीन सुझाव दिए, जिसमें पेपर बैलेट पर लौटना भी शामिल है। भूषण द्वारा सुझाए गए अन्य दो विकल्पों में वीवीपैट ग्लास को पारदर्शी बनाना और वीवीपैट द्वारा दिखाई गई पर्ची मतदाताओं को देना शामिल है।
दरअसल, याचिका में मांग की गई है कि मतदाताओं को VVPAT की पर्ची फिजिकली वेरिफाई करने का मौका दिया जाना चाहिए। वोटर्स को खुद बैलेट बॉक्स में पर्ची डालने की सुविधा मिलनी चाहिए। इससे चुनाव में गड़बड़ी की आशंका खत्म हो जाएगी।बता दें कि एक VVPAT यूनिट एक कागज की पर्ची बनाती है जो एक सीलबंद ड्रॉप बॉक्स में एकत्रित होने से पहले लगभग सात सेकंड के लिए स्क्रीन के माध्यम से मतदाता को दिखाई देती है। जिससे पता चलता है कि उसका वोट किस पार्टी या उम्मीदवार को गया है।
एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि, हम कागजी मतपत्रों की ओर वापस जा सकते हैं। दूसरा विकल्प मतदाताओं को हाथ में वीवीपैट पर्ची देना है। जिसे मतपेटी में डाला जा सकता है। जिस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने जवाब दिया, “हम 60 के दशक में हैं। हम सभी जानते हैं कि जब मतपत्र थे तो क्या हुआ था, आप भी जानते होंगे, लेकिन हम नहीं भूले हैं।”
आपको बता दें कि देश में VVPAT मशीन का इस्तेमाल पहली बार 2014 के आम चुनावों में किया गया था। इसे इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) और भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (BEL) ने बनाया है। जिस पर चुनावों में धांधली का आरोप लगाते हुए विपक्षी दल जांच की मांग कर रहे हैं।