नईदिल्ली I सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक हिजाब प्रतिबंध मामले में सवाल केवल स्कूलों में प्रतिबंध को लेकर है, जबकि किसी को भी इसे कहीं और पहनने की मनाही नहीं है. शीर्ष अदालत राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रही थी.
वहीं एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ से अनुरोध किया कि इस मामले को पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा जाए. उन्होंने दलील दी कि अगर कोई लड़की संविधान के अनुच्छेद 19, 21 या 25 के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए हिजाब पहनने का फैसला करती है, तो क्या सरकार उस पर ऐसा प्रतिबंध लगा सकती है जो उसके अधिकारों का उल्लंघन करे. इस पर पीठ ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘सवाल यह है कि कोई भी आपको हिजाब पहनने से नहीं रोक रहा है. आप इसे जहां चाहें पहन सकते हैं. केवल प्रतिबंध स्कूल में है. हमारी चिंता केवल उस प्रश्न से है.’’
कामत ने अफ्रीका की संवैधानिक कोर्ट के फैसले का दिया उदाहरण
सुनवाई की शुरुआत में, कामत ने कहा कि उनका प्रयास संविधान के अनुच्छेद 145(3) के तहत इस मामले के संदर्भ पर विचार करने के लिए पीठ को राजी करना है.अनुच्छेद 145 (3) कहता है कि संविधान की व्याख्या के रूप में या अनुच्छेद 143 के तहत किसी संदर्भ की सुनवाई के उद्देश्य से कानून के एक महत्वपूर्ण प्रश्न से जुड़े किसी भी मामले को तय करने वाली पीठ में न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पांच होगी. बहस के दौरान, कामत ने एक लड़की के मामले में दक्षिण अफ्रीका की संवैधानिक अदालत के एक फैसले का भी उल्लेख किया, जो स्कूल में नथुनी पहनना चाहती थी. इस पर न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, ‘‘मैं जितना जानता हूं, उसके हिसाब से नथुनी किसी भी धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है.’’ उन्होंने कहा कि मंगलसूत्र तो (धार्मिक प्रथा का) हिस्सा है, लेकिन नथुनी नहीं. पीठ ने कहा कि पूरी दुनिया में महिलाएं झुमके पहनती हैं, लेकिन यह धार्मिक प्रथा का मामला नहीं है. न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, ‘‘मेरी धारणा है कि हमारे देश में इस तरह का विविधीकरण किसी अन्य देश में नहीं है.’’
अपने देश की तुलना अमेरिका और कनाडा से कैसे कर सकते हैं- कोर्ट
वहीं जब कामत ने अमेरिका के फैसलों का हवाला दिया, तो पीठ ने कहा, ‘‘हम अपने देश के साथ अमेरिका और कनाडा की तुलना कैसे कर सकते हैं.’’ पीठ ने कहा, ‘‘हम बहुत रूढ़िवादी हैं….’’ पीठ ने कहा कि ये फैसले उनके समाज के संदर्भ में दिये गये हैं.जब शीर्ष अदालत के पिछले फैसले का हवाला दिया गया और संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) और कपड़े पहनने की स्वतंत्रता के बारे में एक तर्क दिया गया, तो पीठ ने कहा, ‘‘आप इसे एक अतार्किक अंत तक नहीं ले जा सकते.’’ इस पर पीठ ने पूछा, ‘‘पोशाक के अधिकार का मतलब कपड़े उतारने का भी अधिकार होगा.’’ इस पर कामत ने कहा कि कोई भी स्कूल में कपड़े नहीं उतार रहा है.
मामले पर आज भी सुनी जाएंगी दलीलें
बता दें कि बेंच आज बृहस्पतिवार को भी इस मामले में दलीलें सुनना जारी रखेगी. उच्च न्यायालय के 15 मार्च के उस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई हैं जिसमें कहा गया है कि हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित किया जा सकता है.