छत्तीसगढ़

मान सरकार बोली- सिद्धू पर किसी खतरे का इनपुट नहीं, हाईकोर्ट ने कहा- सुरक्षा पर एक महीने में फैसला लें

चंडीगढ़ : पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई की ओर से दी गई धमकी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू की सुरक्षा पर एक महीने में फैसला लेने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि अगर आश्वयक हो तो सिद्धू की सुरक्षा में बढ़ोतरी की जाए। इस आदेश के साथ ही हाईकोर्ट ने सिद्धू की याचिका का निपटारा कर दिया। लॉरेंस ने पंजाब के दो नेताओं राजा वड़िंग व सिद्धू को टारगेट बताया था।

याचिका में नवजोत सिंह सिद्धू ने बताया है कि उन पर खतरे का आंकलन करने के बाद केंद्र सरकार ने उन्हें जेड प्लस सुरक्षा दी थी। रोड रेज केस में एक साल की सजा के बाद उनकी सुरक्षा वापस ले ली गई थी। तब उन्हें विश्वास दिलाया गया था कि जब वह जेल से वापस आएंगे तो उनकी सुरक्षा को बहाल कर दिया जाएगा, जबकि ऐसा नहीं किया गया और सुरक्षा में कटौती भी कर दी गई। जेल से वापस आने के बाद अचानक एक दिन उनके घर में एक अज्ञात व्यक्ति ने भी घुसने का प्रयास किया था। याची की शिकायत पर इस मामले में पटियाला पुलिस ने एफआईआर भी दर्ज की थी।

सिद्धू पर किसी खतरे का इनपुट नहीं: सरकार
पंजाब सरकार ने सिद्धू की जेड प्लस सुरक्षा बहाल करने की मांग पर कहा कि केंद्रीय जांच एजेंसियों व पंजाब के स्पेशल डीजीपी इंटरनल सिक्योरिटी के अनुसार सिद्धू को देश में सक्रिय किसी भी आतंकवादी/गैंगस्टर संगठनों से खतरे का इनपुट नहीं है। हालांकि उनकी वर्तमान सुरक्षा को बरकरार रखने का सरकार ने निर्णय लिया था।

सुरक्षा पर फैसला लेते वक्त घटनाओं का ध्यान नहीं रखा
हाईकोर्ट ने याची की ओर से बताई गई दो घटनाओं का जिक्र करते हुए बताया कि लॉरेंस की धमकी के बाद राजा वड़िंग की सुरक्षा बढ़ा दी गई जबकि सिद्धू की सुरक्षा घटा दी गई। दूसरी घटना सिद्धू को समन पर बिहार भेजने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया गया था कि जेड प्लस सुरक्षा छोड़ना सिद्धू के लिए बड़ा सुरक्षा जेखिम है। इसलिए उसे बिहार नहीं भेजा सकता।

कोर्ट ने कहा कि याची की सुरक्षा पर फैसला लेते समय इन दोनों घटनाओं का ध्यान नहीं रखा गया। ऐसे में कोर्ट ने अब इन दोनों घटनाओं पर विचार करने के बाद सिद्धू की सुरक्षा पर एक माह में निर्णय लेने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सुरक्षा का मुद्दा राज्य का विषय है और इसमें कोर्ट का दखल न्यूनतम होना चाहिए। ऐसे में राज्य सरकार इस पर उचित निर्णय लें।