नई दिल्ली। फ्रांस के पेरिस में साल 2024 में ओलंपिक का आयोजन किया जाएगा। कोरोना के बाद टोक्यो में ओलंपिक का आयोजन किया गया था, जिसमें भारतीय एथलीटों ने बेहद शानदार प्रदर्शन किया। अपने ऐतिहासिक प्रदर्शन के दौरान 1 स्वर्ण, 2 सिल्वर और 4 कांस्य पदक समेत कुल 7 मेडल पर कब्जा जमाया। कई खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया, लेकिन वह ओलंपिक पदक से चूक गए।
ओलंपिक के इतिहास में कई ऐसे मौके आए हैं, जहां ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद भी भारतीय एथलीट मेडल नहीं जीत सके हैं। आईए जानते हैं ऐसे ही कुछ शानदार भारतीय खिलाड़ियों के बारे में जिन्होंने ओलंपिक में लाजवाब प्रदर्शन किया पर पदक से चूक गए।
मिल्खा खिंह
रोम ओलंपिक, 1960 में भारत को उम्मीद थी कि भारत के फ्लाइंग सिख मेडल जीतकर देश वापस आएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने अपना दमखम भी लगाया। 400 मीटर रेस में फाइनल में जगह बनाई। फाइनल मैच में मिल्खा सिंह 45.73 सेकंड में दौड़ पूरी। यह 40 सालों तक भारतीय राष्ट्रीय रिकॉर्ड बना रहा। इसके बावजूद मिल्खा सिंह एक सेकंड के सौवें हिस्से से चूक गए और उनके हाथ से मेडल फिसल गया। वह चौथे स्थान पर रहे थे।
श्रीराम सिंह
दूसरा नाम श्रीराम सिंह का आता है। मिल्खा सिंह की तरह श्रीराम सिंह भी भारत के बेजोड़ एथलीट रहे हैं। मॉन्ट्रियल ओलंपिक, 1976 में श्रीराम ने 800 मीटर रेस के फाइनल में पहुंच कर पदक की आस जगा दी, लेकिन फाइनल में वह सातवें स्थान पर रहे। श्रीराम ने दौड़ पूरी करने में 1:45.77 मिनट का समय लिया। हालांकि, यह भी एक रिकॉर्ड रहा था।
पीटी उषा
तीसरे स्थान पर नाम भारत की उड़न परी पीटी उषा का है। लॉस एजिंलिस ओलंपिक, 1984 में पीटी उषा ने 400 मीटर की बाधा दौड़ के फाइनल में वह हार गईं। कांस्य पदक के लिए वह सेकेंड के सौवें हिस्से से हार गईं और पदक से वंचित हो गईं। पीटी उषा भी मिल्खा सिंह की ही तरह चौथे स्थान पर रही थीं।
लिएंडर पेस-महेश भूपति
भारत की एक्सप्रेस जोड़ी के नाम से मशहूर लिएंडर पेस-महेश भूपति की जोड़ी एथेंस ओलंपिक, 2004 में युगल टूर्नामेंट के सेमीफाइनल में जगह बनाई। इसके बाद उन्हें हार का सामना करना। भारतीय जोड़ी को कांस्य पदक के लिए हुए मैच में क्रोएशिया की जोड़ी से 6-7, 6-4, 14-16 से हार का सामना करना पड़ा। लिएंडर पेस और महेश भूपति की जोड़ी चौथे स्थान पर रही थी।