छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ः प्रदेश का पहला महालक्ष्मी देवी मंदिर,1178 में अकाल पड़ने पर बनवाया था राजा रत्नदेव ने, फिर लौटी थी खुशहाली; जानिए मंदिर से जुड़े रहस्य 

बिलासपुर। बिलासपुर से करीब 25 किमी दूर आदिशक्ति महामाया देवी नगरी रतनपुर में महालक्ष्मी देवी का प्राचीन मंदिर है। धन वैभव, सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की देवी मां महालक्ष्मी का यह प्राचीन मंदिर करीब 843 साल से ज्यादा प्राचीन है। कहते हैं कि राजा रत्नदेव का जब राज्याभिषेक हुआ, तब अकाल और महामारी से प्रजा परेशान थी और राजकोष भी खाली हो चुका था। ऐसे में राजा रत्नदेव ने धन, वैभव और खुशहाली की कामना के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया और विधि विधान से मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना की। इसके बाद उनके शासनकाल में खुशहाली लौट आई।

इस मंदिर को लखनी देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। रतनपुर की पहचान ऐतिहासिक और प्राचीन धरोहर के रूप में है। राजा रत्नदेव की राजधानी की इस नगरी में देश के 51 शक्तिपीठों में से एक आदिशक्ति महामाया देवी की प्राचीन मंदिर यहां की प्रमुख पहचान है। खूंटाघाट डेम के साथ ही आसपास कई पिकनिक स्पॉट भी है, जिसके कारण अब यह पर्यटन स्थल के रूप में भी पहचान बना चुका है।

इकबीरा पहाड़ी में 843 साल से ज्यादा पुराना है मंदिर
जिस पर्वत पर लखनी देवी मंदिर की स्थापना की गई है, इसके भी कई नाम है। इसे इकबीरा पर्वत, वाराह पर्वत, श्री पर्वत और लक्ष्मीधाम पर्वत भी कहा जाता है। ये मंदिर कल्चुरी राजा रत्नदेव तृतीय के विद्वान मंत्री गंगाधर ने 1178 में बनवाया था। उस समय इस मंदिर में जिस देवी की प्रतिमा स्थापित की गई उन्हें इकबीरा और स्तंभिनी देवी कहा जाता था।

मंदिर का आकार पुष्पक विमान जैसा
प्राचीन मान्यता के मुताबिक महालक्ष्मी देवी के मंदिर का निर्माण शास्त्रों में बताए गए वास्तु के अनुसार कराया गया है। यह मंदिर पुष्पक विमान जैसे आकार का है। मंदिर के अंदर श्रीयंत्र भी बना है, जिसकी पूजा-अर्चना करने से धन-वैभव और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

बड़ी संख्या में पहुंचते हैं श्रद्धालु।

बड़ी संख्या में पहुंचते हैं श्रद्धालु।

देवी का सौभाग्य लक्ष्मी रूप
लखनी देवी का स्वरूप अष्ट लक्ष्मी देवियों में से सौभाग्य लक्ष्मी का है। जो अष्टदल कमल पर विराजमान है। सौभाग्य लक्ष्मी की हमेशा पूजा-अर्चना से सौभाग्य प्राप्ति होती है, और मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।

हजारों श्रद्धालुओं की पहुंचती है भीड़
नवरात्र पर्व के साथ ही कार्तिक और अगहन महीने में यहां महालक्ष्मी देवी की विशेष पूजा आराधना होती है। महामाया देवी के अलावा यहां नवरात्र पर्व पर ज्योति कलश प्रज्वलित किया जाता है। हर साल यहां हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए दर्शन करने पहुंचते हैं। कार्तिक और अगहन के महीने में भी धन-वैभव की कामना के साथ श्रद्धालु विशेष पूजा आराधना करते हैं।

मंदिर की पहाड़ी का मनोरम दृश्य।

मंदिर की पहाड़ी का मनोरम दृश्य।

85 फीट ऊंची हनुमानजी की है प्रतिमा
यहां पहाड़ी को अब विकसित भी किया जा रहा है, और पर्यटनस्थल का रूप दिया जा रहा है। पहाड़ी में 85 फीट की हनुमान प्रतिमा स्थापित है, यहां रामदरबार भी है।लखनी देवी मंदिर के बगल में दुलहरा तलाब है। इस संबंध में क्षेत्र के भूपचंद्र शुक्ला ने बताया कि तालाब में दो लहर उठने के कारण इसका नाम दुलहरा तालाब पड़ा है,इस तालाब को अज्ञात वास के दौरान जब पांडव यहां आए थे तब भीम ने खोदा था। यह भी कहा जाता है कि तालाब से बिलासपुर के जूना बिलासपुर स्थित बावली कुंआ और मोपका स्थित नाला का उद्गम जुड़ा हुआ है। इस तरह से यह एक धार्मिक स्थल होने के साथ ही मनोरम स्थल भी है।