नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) को करारी शिकस्त दी है। निवर्तमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के 14 मंत्रियों का हार जाना बहुत कुछ कहता है। नतीजों के बाद कांग्रेस की जीत और बीजेपी की हार के कारणों पर बातें होने लगी हैं। ऐसे कई फैक्टर हैं जिनका बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा। कहा यह भी जा रहा है कि बीजेपी का हाल तो और बुरा होने वाला था। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताबड़तोड़ रैलियों ने इस डैमेज को कंट्रोल किया। बीजेपी पर कांग्रेस की प्रचंड जीत ने दिखाया है कि पानी की थाह लगाने में बीजेपी पूरी तरह चूक गई। 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस ने मजे में 114 का जादुई आंकड़ा हासिल कर लिया। यह कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी टक्कर तक देने में नाकाम साबित हुई।
येदियुरप्पा जैसे दिग्गजों को साइडलाइन करना पड़ा भारी
चुनाव में येदियुरप्पा जैसे दिग्गज नेताओं को साइडलाइन करना बीजेपी को महंगा पड़ा। चुनाव अभियान के दौरान येदियुरप्पा ने खुद को बेटे के प्रचार तक सीमित कर लिया। इससे लिंगायत मतदाताओं की पार्टी से नाराजगी बढ़ती गई। उन्होंने कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया। इसके अलावा बीजेपी ने सीएम रह चुके जगदीश शेट्टार और डिप्टी सीएम रहे लक्ष्मण सावदी का टिकट काट दिया। दोनों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। ये तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता हैं।
इस तरह की चर्चा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने प्रह्लाद जोशी और बीएल संतोष पर जरूरत से ज्यादा भरोसा दिखाया। उन्हें फैसले लेने की पूरी आजादी दे दी। इसने सीटी रवि के रोल पर सवाल खड़े कर दिए। प्रह्लाद जोशी और बीएल संतोष के ज्यादा दखल ने असंतोष पैदा किया। केंद्रीय नेतृत्व ने स्थानीय नेताओं को भरोसे में लिए बिना टिकटों का बंटवारा किया। इसने भी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिराया।
भ्रष्टाचार का मुद्दा बना फांस
बीजेपी के लिए कर्नाटक चुनाव में भ्रष्टाचार का मुद्दा गले की फांस बन गया। कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ इसे लेकर आक्रामक रुख रखा। चुनाव से महीनों पहले ही ’40 फीसदी कमीशन’ का मुद्दा बड़ा बन गया था। इसे लेकर ही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा तक देना पड़ा था। एक बीजेपी विधायक जेल भी गया था। यह और बात है कि बीजेपी ने इसका तोड़ निकालने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए।
मजबूत चेहरे की कमी
बीजेपी के पास चुनाव में मजबूत चेहरा नहीं था। बसवराज बोम्मई येदियुरप्पा के कद के नेता नहीं थे। मुख्यमंत्री रहते हुए भी वह कुछ खास असर नहीं छोड़ पाए। वहीं, कांग्रेस का खेमा धुरंधरों से भरा था। उसके पास सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार जैसे बड़े चेहरे थे। चुनावी मैदान में बसवराज के साथ उतरना बीजेपी पर भारी पड़ा।
जनता का मूड भांपने में हुई गलती
बीजेपी से कर्नाटक की जनता का मूड भांपने में भी गलती हुई। उसने बजरंग बली और मुस्लिम आरक्षण पर बड़ा दांव खेला। पिछले लगभग एक साल से पार्टी के नेताओं ने हलाला, हिजाब और अजान के मुद्दे पर आक्रमकता बनाए रखी। इसके जरिये कोशिश ध्रुवीकरण की थी। हालांकि, यह कोशिश नाकाम ही साबित हुई। कर्नाटक के लोगों ने इससे ज्यादा तवज्जो नहीं दी। यह पार्टी के लिए भी एक बड़ा सबक है। वह यह कि सिर्फ हिंदू-मुसलमान के मुद्दे के सहारे सभी राज्यों में जीत हासिल नहीं की जा सकती है।