रायपुर I राजधानी से 40 किमी दूर खरोरा के रामलखन यादव की पिछले साल जनवरी में संदिग्ध परिस्थितियों में लाश मिली। पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को शव भी सौंप दिया। कुछ माह बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट तो पुलिस को मिल गई, लेकिन उससे मौत किस वजह से हुई? ये स्पष्ट नहीं हुआ।
अब पुलिस विसरा रिपोर्ट का इंतजार कर रही है। उसकी रिपोर्ट से स्पष्ट होगा युवक की मौत किस वजह से हुई? परिजनों को हत्या का शक है। पुलिस की थ्योरी इससे अलग है। रिपोर्ट नहीं मिलने के कारण केस आगे नहीं बढ़ रहा है। ये ऐसा इकलौता केस नहीं है, रायपुर के 32 थानों में 15-20 के औसत से करीब 500 से ज्यादा केस इसी वजह से पेंडिंग हैं।
किसी में पोस्टमार्टम तो किसी में विसरा रिपोर्ट के कारण केस दर्ज नहीं हो पा रहा है। इस वजह से सड़क हादसों के केस में परिजनों को मिलने वाला बीमा का क्लेम अटका हुआ है। कुछ प्रकरण में जीवन बीमा की पॉलिसी के लिए भी मृतकों के परिजन भटक रहे हैं। पोस्टमार्टम या फोरेंसिक रिपोर्ट नहीं मिलने के कारण केस फाइनल नहीं हो रहा है।
इस वजह से उन्हें पॉलिसी नहीं मिल पा रही है। पेंडिंग की इस लिस्ट में आत्महत्या के कुछ मामले क्यूडी से हैंडराइटिंग की रिपोर्ट नहीं मिलने के कारण भी अटके पड़े हैं।
फोरेंसिक की कई रिपोर्ट तो डेढ़-डेढ़ साल बाद भी थानों में नहीं पहुंच रही है। पड़ताल में पता चला है कि पोस्टमार्टम की 255 और फोरेंसिक की 260 से ज्यादा रिपोर्ट का पुलिस को इंतजार है। दावा किया जाता है कि थाने का स्टाफ रिपोर्ट के लिए लगातार चक्कर काटता है। लेकिन फायदा नहीं हो रहा है। कई बार थानेदार का तबादला होने के कारण भी केस की जांच अटक गई है। नए थानेदार दूसरे केस में उलझ जाते हैं और पेंडिंग की तरफ ध्यान नहीं जाता।
पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों का तर्क
डॉक्टरों ने बताया कि एक शव का पोस्टमार्टम करने में एक घंटे लग जाते हैं। बाद में उसकी रिपोर्ट तैयार करने में दो से ढाई घंटे का समय लगता है। पोस्टमार्टम के बाद हर केस में एक न एक बार गवाही देने कोर्ट जाना पड़ता है। इसके अलावा मेडिकल कॉलेज में क्लास लेनी पड़ती हैं। इस वजह से रिपोर्ट बनाने का समय नहीं मिल पाता इससे पेंडिंग सूची बढ़ती जाती है।
इसलिए जरूरी है रिपोर्ट
सड़क हो या फैक्ट्री का हादसा इसमें मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने का प्रावधान है। इसके लिए पीएम रिपोर्ट की जरूरत होती है। बीमा कंपनियां भी मौत की वजह जानने के लिए रिपोर्ट मांगती है। उसके बिना किसी भी केस में क्लेम नहीं दिया जाता। ऐसे में पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिलने के कारण क्लेम अटक जाता है और परिजन भटकते रहते हैं।
एक नजर में 255- पोस्टमार्टम की जांच रिपोर्ट 260- फोरेंसिक की जांच रिपोर्ट
डेढ़ साल से इंतजार
केस-1
खरोरा निवासी चांदनी निषाद की जनवरी 2021 में मौत हो गई थी। प्रारंभिक जांच में जहर सेवन की पुष्टि हुई थी। अब तक बिसरा रिपोर्ट नहीं आया है। इससे मौत की वजह पता नहीं चल पाई है। परिवार वाले रिपोर्ट के लिए भटक रहे हैं।
केस-2
मार्च का पीएम पेंडिग
इस साल मार्च में भंडा निवासी दुर्गा यादव ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। पुलिस जब पहुंची तो परिजनों ने शव नीचे उतार दिया था। उसकी अब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिल पाई है। इस वजह से केस की जांच अटक गई है।
रिपोर्ट के लिए लगा रहे चक्कर
शहर के टीआई का कहना है। पीएम-फोरेंसिक रिपोर्ट के लिए कई बार चक्कर काटना पड़ता है। स्टाफ को बार-बार भेजना पड़ता है। कई बार चिट्ठी भी भेजी गई है। रिपोर्ट नहीं मिलने से कई बार केस दर्ज नहीं कर पाते हैं। मौत की वजह पता नहीं होने से जांच अटक जाती है।
हर थाना में पीएम-फोरेसिंक रिपोर्ट के लिए अलग से स्टाफ है। पुलिस की जांच के साथ मृतकों के परिजनों को इस रिपोर्ट की जरूर होती है। संवेदनशील मामलों में तो डेढ़-दो साल बाद रिपोर्ट मिलती है। तब तक मामला अधर पर लटका रहता है।
हर महीने 300 पीएम
अंबेडकर अस्पताल फॉरेंसिक साइंस डिपार्टमेंट की एचओडी स्निग्धा जैन बंसल का कहना है पहले 6 डॉक्टर थे। दो छोड़कर चले गए हैं। अभी पोस्टमार्टम के लिए सिर्फ 4 डॉक्टर हैं। रोजाना औसतन 10-11 पोस्टमार्टम किया जा रहा है। रिपोर्ट तैयार करने में कई बार देरी अन्य कारणों से होती है। विभाग में 11 डॉक्टर और आधा दर्जन सहयोगी के लिए पद हैं।
पोस्टमार्टम और फोरेंसिक रिपोर्ट नहीं मिलने से पुलिस की जांच प्रभावित होती है। क्योंकि मौत की वजह पता नहीं होने से जांच रुक जाती है। थाना स्तर में लगातार पत्राचार किया जा रहा है।
– सुखनंदन राठौर, एएसपी सिटी