छत्तीसगढ़

Tata परिवार की वो बहू, जिसने हिंदुस्तान में बैन कराया बाल विवाह

नईदिल्ली I भारत को पहली एयरलाइंस, पहला लग्जरी होटल, यहां तक कि पहली आम आदमी की कार देने वाले टाटा समूह ने देश की कई सामाजिक कुरीतियों को भी खत्म करने का काम किया है. इनमें से एक थी ‘बाल विवाह’ जैसी समस्या. आजादी से पहले 1929 में ही इस कुरीति को बंद कराने के लिए कानून लाया गया, पर क्या आप जानते हैं कि इस आमूलचूल बदलाव को लाने में टाटा परिवार की एक बहू ने खूब काम किया. चलिए जानते हैं उनके बारे में…

बाल विवाह रोकथाम कानून को आम लोग ‘सारदा एक्ट’ के रूप में भी जानते हैं. ये सितंबर 1929 में पारित हुआ और 1930 में लागू. इसने देश में लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल की, जिसे अब बढ़ाकर क्रमश: 18 और 21 किया जा चुका है. वहीं मौजूदा सरकार लड़कियों की उम्र भी बढ़ाकर 21 करने की इच्छा रखती है. पर हम बात कर रहे हैं टाटा खानदान की सबसे बड़ी बहू ‘मेहरबाई टाटा’ की…

टाटा परिवार की बड़ी बहू मेहरबाई

जमशेदजी टाटा के सबसे बड़े बेटे दोराबजी टाटा की पत्नी मेहरबाई टाटा, मूल रूप से मैसूर की थीं. वह भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम के जनक होमी जहांगीर भाभा की बुआ लगती थीं. उन्हें अक्सर लोग ‘लेडी टाटा’ के नाम से भी जानते हैं.

लेडी टाटा की शादी दोराबजी टाटा से 1897 हुई. वो अपने दौर में महिला अधिकारों की आवाज उठाने वाली सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक थीं. और, बाल विवाह रोकथाम का कानून, भारत के शुरुआती महिला आंदोलनों की सफलता का एक नायाब नमूना है.

मेहरबाई टाटा ने जब उठायी आवाज

मेहरबाई टाटा ने ना सिर्फ सारदा एक्ट को मूर्त रूप देने के लिए सलाह मशविरा दिया. बल्कि भारत और विदेशों में बड़े स्तर पर इसकी वकालत की. देश के प्रतिष्ठित महिला संगठन जैसे कि National Women’s Council और All India Women’s Conference की सदस्य होने के नाते उन्होंने 1927 में ही मिशिगन के एक कॉलेज में इसकी एक केस स्टडी पेश की.

इसके बाद एंड्रयू यूनिवर्सिटी जो उन दिनों ‘बैटल क्रीक कॉलेज’ कहलाता था, में भी इसे लेकर बड़ा जोरदार भाषण दिया. अंग्रेजी हुकूमत के दौर में उन्होंने एक तरह से जहां भारतीय नेताओं और आम जनमानस को इस कानून के लिए तैयार किया. वहीं दबाव बनाने के लिए एक वर्ल्ड ओपिनियन तैयार करने में भी अहम भूमिका निभाई.

कैंसर से हुई लेडी टाटा की मौत

हमेशा महिला अधिकारों के लिए खड़ी रहने वाली लेडी टाटा का निधन 1931 में हुआ. तब उनकी उम्र मात्र 52 साल थी. उन्हें ‘ल्यूकीमिया’ (एक तरह का ब्लड कैंसर) था. उनकी याद में उनके पति दोराबजी टाटा ने ‘लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट’ बनाया.