छत्तीसगढ़

PFI पर प्रतिबंध से लालू-ललन को क्यों लगी मिर्ची? ओवैसी भी बौखलाए!

नईदिल्ली I केंद्र सरकार ने पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर 5 साल के लिए बैन लगा दिया है. एनआईए और ईडी की छापेमारी में आतंकी कनेक्शन का खुलासा होने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह फैसला लिया है. इस फैसले को लेकर खूब राजनीति हो रही है. कुछ पार्टियां इस फैसले का समर्थन कर रही हैं तो वहीं कुछ पार्टियाें को इस फैसले पर आपत्ति है. कांग्रेस सांसद के सुरेश के बाद लालू प्रसाद ने इस फैसले के बहाने आरएसएस को निशाने पर लिया तो वहीं जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने इस प्रतिबंध पर ही सवाल खड़ा कर दिया. वहीं, ओवैसी ने भी कार्रवाई पर आपत्ति जताई है.

बिहार बेस्ड पार्टी आरजेडी और जेडीयू हो, हैदराबाद बेस्ड पार्टी एआईएमआईएम हो या फिर कांग्रेस हो, केंद्र सरकार के इस फैसले से मिर्ची तो लग ही गई है. इन सबके पीछे बड़ी वजह है, इन पार्टियों की राजनीति. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस फैसले से जो वर्ग प्रभावित हो रहा है, वह इन पार्टियों के वोट बैंक में शामिल रहा है. ऐसे में ये पार्टियां इस फैसले के बहाने राजनीति कर रही हैं.

किसने क्या आपत्ति जताई?

पीएफआई पर पाबंदी लगाने के फैसले को लेकर कांग्रेस सांसद के सुरेश ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बैन लगाने की मांग कर दी. उन्होंने कहा- PFI पर बैन लगाना कोई उपाय नहीं है. आरएसएस भी सांप्रदायिकता फैला रहा है. दाेनों पर कार्रवाई हो. वहीं आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद ने भी यही मांग कर डाली. उन्होंने कहा कि संघ भी पूरे देश में हिंदू सांप्रदायिकता फैलाने का काम कर रही है, जो PFI की तरह ही है, इसलिए इसे भी बैन कर देना चाहिए.

इधर, जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने केंद्र सरकार से पीएफआई के खिलाफ सबूत ही मांग डाला. उन्होंने कहा- आखिर पीएफआई के खिलाफ साक्ष्य क्या है? अगर केंद्र सरकार ने पीएफआई के खिलाफ बैन लगाया है तो उसे क्या-क्या सबूत मिले हैं, पेश करना चाहिए. दूसरी ओर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि वह पीएफआई के नजरिये का विरोध करते हैं लेकिन प्रतिबंध का भी समर्थन नहीं कर सकते. उन्होंने आपत्ति जताई कि सरकार ने दक्षिणपंथी बहुसंख्यक संगठनों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया?

राजनीति और जनाधार

पीएफआई पर प्रतिबंध से इन पार्टियों को मिर्ची क्यों लगी, इसको लेकर बड़ा कारण है- वोट बैंक. बिहार में अल्पसंख्यक एक बड़ा वोट बैंक है. और यही वो वर्ग है, जो पीएफआई पर प्रतिबंध के फैसले से प्रभावित हुआ है. दिल्ली यूनिवर्सिटी में मीडिया शिक्षक डॉ रुद्रेश नारायण मिश्र कहते हैं कि आरजेडी हमेशा एमवाई (मुस्लिम+यादव) समीकरण पर चुनाव लड़ती रही है. यही हाल जेडीयू का भी है. वे कहते हैं कि पीएफआई से प्रभावित होने वाले वर्ग में ऐसी पार्टियों का वोट बैंक होना तय है. पीएफआई पर प्रतिबंध के बहाने ये पार्टियां प्रभावित वर्ग के प्रति कहीं न कहीं अपना सॉफ्ट कॉर्नर दिखा रही हैं.

एक अन्य रिसर्चर और स्तंभकार सन्नी कुमार कहते हैं कि आरएसएस, कांग्रेस-आरजेडी की आंखों में शुरू से ही गड़ता रहा है और ऐसे में पीएफआई पर प्रतिबंध के बहाने उनका आरएसएस पर कार्रवाई की मांग करना आश्चर्य का विषय नहीं है. वे कहते हैं कि जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह द्वारा सबूत की मांग करना हास्यास्पद है. किसी भी संगठन पर प्रतिबंध लगाने के लिए यूएपीए कानून है. यह एक पूरी प्रक्रिया है, जिसके तहत लंबी जांच के बाद यह कदम उठाया गया है.

एनआईए और ईडी की छापेमारी में पीएफआई के टेरर लिंक का बड़ा खुलासा हुआ है. आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के दस्तावेज मिलने के बाद संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया है. जांच में यह सामने आया है कि पीएफआई ने 1 साल में करीब 120 करोड़ रुपये का फंड जुटाया है. इसके अलावा करीब 240 करोड़ कैश के तौर पर इकट्ठा किया है. यह रकम देश के अंदर और खाड़ी देशों से जुटाई गई है और इन पैसों का इस्तेमाल देश विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल किए जाने के सबूत भी मिले हैं. इतने के बावजूद पार्टियां जबरन राजनीति कर रही है.