छत्तीसगढ़

बेटे को साथ लेकर कार्यक्रम में पहुंची महिला कलेक्टर, सोशल मीडिया पर छिड़ी ये बड़ी बहस

नईदिल्ली I केरल में अपने तीन साल के बेटे के साथ एक सार्वजनिक समारोह में शामिल होने के एक महिला आईएएस अधिकारी के फैसले ने सोशल मीडिया पर ‘उचितता’ और वर्क लाइफ बैलेंस पर एक बहस छेड़ दी है. जिसके बाद उनके पति और यूथ कांग्रेस के राज्य उपाध्यक्ष के एस सबरीनाधन ने उनका बचाव करते हुए कहा कि अधिकांश कामकाजी महिलाएं “अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए भी” कई भूमिकाएं निभाती हैं.

एक खबर के मुताबिक पतनमतिट्टा जिला कलेक्टर दिव्या एस अय्यर 30 अक्टूबर को अपने बेटे के साथ अदूर में एक फिल्म समारोह के समापन समारोह में शामिल हुईं. इस कार्यक्रम में वह अपने बेटे को गोद में लिए हुए सभा को संबोधित करती रहीं. समारोह में अय्यर का एक वीडियो भाकपा नेता और विधानसभा के उपाध्यक्ष चित्तयम गोपकुमार ने अपने फेसबुक पेज पर शेयर किया. गीतकार राजीव अलुनकल ने सबसे पहले अय्यर पर कटाक्ष किया. उन्होंने कहा कि उन्होंने इस कार्यक्रम को छोटा कर दिया और यह फॉलो करने लायक नहीं है.

अय्यर के समर्थन में उतरे लोग

जैसे ही आलोचना बढ़ी, उपन्यासकार बेन्यामिन ने अय्यर के समर्थन में बात की. बेन्यामिन ने कहा कि एक जिला कलेक्टर के अलावा, अय्यर अपने जीवन में पत्नी, मां, दोस्त इत्यादि जैसी कई भूमिकाएं निभाती हैं. उन्होंने कहा, “उन्हें अपने बच्चे के साथ समय बिताने का भी अधिकार है,” उन्होंने कहा कि मां सभी जगह है. दुनिया अपने बच्चों के साथ विधानसभाओं और सार्वजनिक समारोहों में भाग ले रही थी. उन्होंने आगे कहा, “हम हर चीज में कमियां ढूंढने के निंदक दृष्टिकोण को कब बंद करेंगे?”

जब संयुक्त राष्ट्र में 3 महीने की बेटी लेकर पहुंची महिला

बेन्यामिन की तरह, सोशल मीडिया पर कई लोगों ने न्यूजीलैंड की प्रधान मंत्री जैसिंडा अर्डर्न के उदाहरण पर प्रकाश डाला, जिन्होंने 2018 में अपनी तीन महीने की बेटी को संयुक्त राष्ट्र महासभा में लाकर इतिहास रच दिया था. जब अर्डर्न ने संयुक्त राष्ट्र में एक शांति शिखर सम्मेलन में अपना भाषण दिया, तो उनके साथी क्लार्क गेफोर्ड ने शिशु को अपनी गोद में रखा था.

हालांकि अय्यर बहस से दूर रहे, लेकिन उनके पति और यूथ कांग्रेस के राज्य उपाध्यक्ष के एस सबरीनाधन ने एक फेसबुक पोस्ट के जरिए बात की. यह अकेले दिव्या अय्यर का मुद्दा नहीं है. ज्यादातर कामकाजी महिलाएं कई मुश्किलों और परेशानियों को पार कर अपने पैरों पर खड़ी होती हैं. यह आलोचना उस हद तक कम हो जाएगी जब हमें एहसास होगा कि कैसे कामकाजी महिलाएं अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए भी एक मां और पत्नी की भूमिकाओं को निभाते हुए अपनी यात्रा जारी रखती हैं.’