छत्तीसगढ़

हिजाब विवाद: सुप्रीम कोर्ट का याचिकाकर्ताओं से सवाल, क्या छात्राएं मिनी-मिडी, जो चाहे पहनकर स्कूल जा सकती हैं?

नई दिल्ली। कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध के मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता छात्राओं की ओर से दी जा रही धार्मिक परंपरा के पालन की दलीलों पर कहा कि किसी को भी अपनी पसंद की धार्मिक परंपरा के पालन का अधिकार है। यहां सवाल है कि क्या स्कूल में धार्मिक परंपरा का पालन कर सकते हैं, जहां यूनीफार्म निर्धारित है? क्या जो चाहें वह पहनकर स्कूल जा सकते हैं? क्या छात्राएं मिनी-मिडी, जो चाहे पहनकर स्कूल जा सकती हैं? सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टालने की मांग ठुकराते हुए कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध पर नियमित सुनवाई शुरू कर दी। इस दौरान कोर्ट ने कई टिप्पणियां की और सवाल किए।

बुधवार को होगी अगली सुनवाई

मामले में सुनवाई जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की पीठ कर रही है। अगली सुनवाई बुधवार को होगी। बता दें कि कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में करीब दो दर्जन याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने 15 मार्च को दिए फैसले में स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने वाले राज्य सरकार के आदेश को सही ठहराया था। कोर्ट ने कहा था कि हिजाब इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। पिछली तिथि को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से सुनवाई टालने के अनुरोध पर गहरी नाराजगी जताई थी और कहा था कि मनपसंद बेंच चुनने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

सुनवाई टालने की मांग नहीं मानी

सोमवार को जब मामला सुनवाई पर आया, तो याचिकाकर्ताओं की ओर से फिर इसे टालने का अनुरोध किया गया। वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि बहुत विस्तृत सुनवाई की जरूरत है। इसमें संवैधानिक और जन महत्व का मुद्दा शामिल है। इसलिए मामले को नियमित सुनवाई के दिन लगाया जाए। जब कोर्ट सुनवाई टालने को तैयार नहीं हुआ, तो दवे ने कहा कि वे केस की पेपर बुक नहीं ला पाए हैं।

राजीव धवन ने भी सुनवाई टालने का अनुरोध किया। कहा, मामले में धार्मिक स्वतंत्रता और हिजाब के इस्लाम का अभिन्न हिस्सा होने का संवैधानिक सवाल शामिल है। इसलिए कोर्ट को यह भी देखना होगा कि कितने न्यायाधीशों की पीठ सुनवाई करेगी। उन्होंने अनुच्छेद 145(3) का हवाला दिया, जिसमें संवैधानिक महत्व के मुद्दों पर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की सुनवाई की बात है। धवन ने कहा कि यहां ड्रेस कोड का मुद्दा है। हिजाब पहन सकते हैं कि नहीं। दुनियाभर की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर लगी हैं। उन्होंने ड्रेस कोड के बारे में कई उदाहरण भी दिए। सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई टालने का विरोध किया। कोर्ट ने सुनवाई टालने की मांग नहीं मानी।

सालिसिटर जनरल जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं करेंगे

केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को फिर साफ किया कि वे जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं करेंगे। क्योंकि यह कानून का मुद्दा है, इसलिए सीधे बहस करेंगे। दोपहर में जब मामले पर विधिवत सुनवाई शुरू हुई, तो सबसे पहले कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने दलीलें रखनी शुरू की। हेगड़े ने कहा कि राज्य सरकार के आदेश के कारण लड़कियों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। आप किसी को हिजाब के कारण रोक कैसे सकते हैं। लड़कियां यूनीफार्म पहनती हैं। बस धार्मिक परंपरा का निर्वाह करते हुए हिजाब पहनती हैं, जिसकी वजह से उन्हें स्कूल में नहीं घुसने दिया जा रहा है।

याचिकाकर्ता ने दी कई दलीलें

पीठ ने कहा कि यहां सवाल है कि क्या स्कूल में हिजाब पहन कर जाया जा सकता है, जहां यूनीफार्म तय है। हेगड़े ने कहा कि याचिकाकर्ता छात्राएं यूनीफार्म में स्कूल जाती हैं। बस धार्मिक परंपरा का निर्वाह करते हुए हिजाब पहनती हैं। जैसे चुन्नी सिर पर रखते हैं उसी तरह। पंजाब में सलवार कमीज और चुन्नी यूनीफार्म होती है। वहां लड़कियां सिर पर चुन्नी रखती हैं। इस दलील पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि चुन्नी अलग चीज है। उसकी हिजाब से तुलना नहीं हो सकती। पंजाब में सिख महिलाएं सिर्फ गुरुद्वारा जाते वक्त सिर पर चुन्नी रखती हैं। कोर्ट में भी एक मामले में खबर आई थी कि कोर्ट ने एक महिला वकील को जीन्स पहनने पर टोका था।

स्कूल के अनुशासन को नहीं तोड़ सकते

एसएसजी केएम नटराज ने कहा कि यहां शैक्षणिक संस्थाओं में अनुशासन का सीमित मुद्दा है। पीठ ने उनसे सवाल किया कि कोई छात्रा हिजाब पहनती है, तो स्कूल का अनुशासन कैसे भंग होगा? नटराज ने कहा कि कोई भी धार्मिक परंपरा के निर्वाह का हवाला देकर स्कूल के अनुशासन को नहीं तोड़ सकता। कर्नाटक के एडवोकेट जनरल ने कहा कि राज्य सरकार ने किसी के अधिकार को बाधित नहीं किया है।