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Chinaman Bowler: जानें क्रिकेट को कैसे मिला पहला चाइनामैन गेंदबाज, 91 साल पुराना है इतिहास, जानें पूरी कहानी

नईदिल्ली I भारतीय टीम ने चटगांव टेस्ट में बांग्लादेश पर मजबूत पकड़ बना ली है। बांग्लादेश की टीम को आखिरी दिन यानी पांचवें दिन 241 रन बनाने हैं, जबकि उसके चार विकेट शेष हैं। भारत ने 513 रन का लक्ष्य रखा था। आखिरी दिन भारतीय स्पिनर बांग्लादेश के बल्लेबाजों पर कहर बनकर टूट सकते हैं। हालांकि, इस टेस्ट में जिस गेंदबाज ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, वह हैं कुलदीप यादव। कुलदीप ने पांच विकेट लेकर बांग्लादेश की पहली पारी को 150 रन पर समेट दिया था। यह उनके टेस्ट करियर का तीसरा फाइव विकेट हॉल रहा।

पांच विकेट पर ट्रेंड करने लगे कुलदीप

इसके बाद कुलदीप ट्रेंड करने लगे थे, क्योंकि करीब दो साल बाद उनकी टेस्ट टीम में वापसी हुई थी। साथ ही कुलदीप की गेंदबाजी शैली ‘चाइनामैन’ भी ट्रेंड करने लगी थी। चाइनामैन बॉलिंग एक विशेष प्रकार की बॉलिंग स्टाइल है जो सिर्फ स्पिनरों के लिए इस्तेमाल होती है। स्पिनर्स में भी सिर्फ बाएं हाथ के स्पिनर्स के लिए ही इस्तेमाल होती है।

क्या है चाइनामैन बॉलिंग?

दरअसल, चाइनामैन बॉलिंग लेफ्ट ऑर्म स्पिनर की लेग स्पिन गेंदबाजी है जो टप्पा पड़ने के बाद दाएं हाथ के बल्लेबाजों के लिए अंदर की ओर आती है और बाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए बाहर की ओर घूमती है। इसमें बाएं हाथ का स्पिनर अपनी कलाइयों का इस्तेमाल कर गेंद को स्पिन कराता है, जिसके कारण वह ऑर्थोडॉक्स लेफ्ट स्पिन गेंदबाज से अलग होता है। इसे बाएं हाथ के स्पिनर्स का गुगली भी कहा जाता है। ऑर्थोडॉक्स लेफ्ट आर्म स्पिनर जैसे रवींद्र जडेजा और अक्षर पटेल।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम ही ऐसे गेंदबाज हुए, जिन्हें चाइनामैन के रूप में पहचान मिली। दक्षिण अफ्रीका के पॉल एडम्स, ऑस्ट्रेलिया के माइकल बेवन, ब्रैड हॉग और साइमन काटिच और वेस्टइंडीज के दिग्गज आलराउंडर गैरी सोबर्स कुछ ऐसे गेंदबाज थे जो चाइनामैन शैली की गेंदबाजी किया करते थे। मौजूदा समय में भारत के कुलदीप यादव और दक्षिण अफ्रीका के तबरजे शम्सी कुछ इसी अंदाज में गेंदबाजी करते हैं। अब जानते हैं कि कैसे ‘चाइनामैन’ शब्द का प्रयोग हुआ, जबकि चीन की टीम क्रिकेट में कुछ खास एक्टिव नहीं है। दरअसल, इसका जनक इंग्लिश काउंटी क्लब यॉर्कशायर मॉरिस लेलैंड को माना जाता है, जो 1931 के समय अपनी खास गेंदबाजी शैली के लिए काफी प्रसिद्ध हुए थे।

कैसे पड़ा ‘चाइनमैन’ नाम?

यूं तो क्रिकेट में चीन की भागीदारी बिल्कुल जीरो है, पिछले कुछ समय पहले तक क्रिकेट को इस देश में कोई जानता भी नहीं था, लेकिन पिछले एक दशक में भारत, पाकिस्तान और आईसीसी के प्रयास के बाद चीन में कुछ क्रिकेट खेले जाने लगे हैं। क्रिकेट में चाइनामैन गेंदबाजी का नाम आज से नौ दशक पहले ही पड़ गया था। 

ऐसा माना जाता है कि इसकी शुरुआत 1920 के दशक में हो चुकी थी। इस गेंदबाजी के असली जनक रॉय किलनर और मॉरिस लेलैंड को माना जाता है। दोनों अपने करियर में एक समय इंग्लिश काउंटी क्लब यॉर्कशायर के लिए खेल चुके हैं। किलनर प्रथम विश्व युद्ध से पहले यॉर्कशायर से खेलते थे। वह कभी-कभी गेंदबाजी करते थे और ऑर्थोडॉक्स स्पिन करते थे।

हालांकि, कुछ खिलाड़ियों द्वारा प्रोत्साहित करने के बाद किलनर ने स्पिन गेंदबाजी को गंभीरता से लेना शुरू किया। इसके बाद वह इंग्लैंड के लिए भी महान गेंदबाज बने। मैच के दौरान किलनर अंगुलियों के साथ-साथ कलाई का भी उपयोग करते थे।

1929 में नेविल कार्डस नाम के एक खिलाड़ी ने बताया था कि किलनर ने उनसे कभी कहा था कि गेंदबाजी में बाएं हाथ से गुगली बॉलिंग एक नई खोज होने वाली है। किलनर की जीवनी जिसे मिक पोप ने लिखा किलनर के भाई और यॉर्कशायर में उनके साथी नॉर्मन ने बताया कि किलनर ने ही असल में ‘चाइनामैन’ शैली की खोज की थी। 1928 में किलनर का निधन हुआ था।

इसके बाद किलनर के साथी लेलैंड ने 1931 में यॉर्कशायर के लिए अपनी गेंदबाजी से खूब नाम कमाया था। वह तब लेफ्ट हैंड रिस्ट स्पिन और गुगली फेंकते थे। इस शैली से उन्हें गेंदबाजी करने में खूब मजा आता था। लेलैंड के 1967 में निधन के बाद उनके विजडन ओबिट्यूरी (मृत्यूलेख) में दर्ज लिखा गया- बिल बोवेस के अनुसार, मौरिस ने दावा किया था कि वह ‘चाइनामैन’ शब्द के लिए जिम्मेदार थे। क्योंकि उन्हें गेंदबाजी करने के कम अवसर मिलते थे। उन्होंने सामान्य और प्राकृतिक लेग ब्रेक के बजाय कभी-कभी बाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए ऑफ ब्रेक गेंदबाजी करना शुरू किया था। जब भी दो बल्लेबाजों को आउट करना मुश्किल होता था या कुछ अलग करना होता था तो यॉर्कशायर टीम का कोई खिलाड़ी या कप्तान उनसे कहता था- मौरिस लेलैंड, अपनी उस चाइनीज स्टाइल में गेंदबाजी करो।

तब यॉर्कशायर के कप्तान रहे डीसीएफ बर्टन ने ‘क्रिकेटर’ में लिखा था- यॉर्कशायर में हमेशा यह सोचा जाता था कि ‘द चाइनामैन’ नामक गेंद मौरिस से उत्पन्न हुई थी। वह एक बाएं हाथ के गेंदबाज थे। वह कभी-कभी राउंड द विकेट आकर बाएं हाथ से ऑफ-ब्रेक गेंदबाजी करते थे, जो अगर सही ढंग से पिच नहीं होता था तो देखने में आसान होता था और लेग-साइड पर निकल जाता था। जब कभी हमारे बीच हंसी मजाक चलता था तो वह कहते थे यह एक प्रकार की गेंद है जो किसी और के आउट नहीं होने पर चीनियों को आउट करने के लिए काफी अच्छी गेंद साबित हो सकती है। इसलिए यह गेंद मौरिस लेलैंड की ‘चाइनामैन’ बन गई।

एक और दिलचस्प कहानी भी है प्रसिद्ध

इस नाम के पीछे एक और कहानी भी काफी दिलचस्प है। ऐसा माना जाता है कि यह नाम एक चीनी क्रिकेटर के नाम से आज से आठ दशक पहले ही पड़ गया था। ऐसा माना जाता है कि गेंदबाजी में इस शैली की गेंदबाजी का जन्म 1933 में ओल्ड ट्रेफर्ड में वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के बीच खेले गए मैच के दौरान हुआ था।

चीनी मूल के खिलाड़ी एलिस पस एचोंग लेफ्ट आर्म स्पिनर थे और उस समय वेस्टइंडीज का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। एचोंग ने अपनी एक गेंद पर इंग्लैंड के दाएं हाथ के बल्लेबाज वाल्टर राबिंस को इस कदर चौंकाया था कि वह स्टंप आउट हो गए थे। पवेलियन लौटते समय राबिंस ने अंपायर से कहा था कि इस ‘चाइनामैन’ ने उन्हें चकमा दिया।

इस घटना का जिक्र पूर्व ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर चिनी बेनो ने एक कार्यक्रम में किया था। उसके बाद से ही ऐसी गेंदबाजी को चाइनामैन कहा जाने लगा। इसके बाद से जिस बाएं हाथ के स्पिनर ने भी कलाई की मदद से गेंद को टर्न कराया, उसे चाइनामैन बॉलर कहा जाने लगा।

कैसे कुलदीप बने चाइनामैन गेंदबाज?

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ‘चाइनामैन’ गेंदबाज कभी-कभी ही नजर आते हैं। ऐसे में कुलदीप यादव ने इस अनूठी कला से पूरी दुनिया का ध्यान बरबस अपनी तरफ खींच लिया है। कुलदीप को चाइनामैन गेंदबाजी में लय हासिल करने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ा था। कुलदीप यादव पहले बाएं हाथ के तेज गेंदबाज बनना चाहते थे, लेकिन उनके कोच ने उन्हें स्पिन गेंदबाजी में करियर बनाने की सलाह दी जो अब इस युवा गेंदबाज के लिए बिल्कुल सटीक साबित हो रही है।