छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ : ज्वालेश्वर महादेव पर जलाभिषेक करने के लिए भक्तों की भीड़, विशेष पूजा अर्चना का है महत्व

कवर्धा : आज महाशिवरात्रि है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा आराधना के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा सभी शिव मंदिरों में देखा जा रहा है। कवर्धा जिले के डोंगरिया गांव में ज्वालेश्वर महादेव में महाशिवरात्रि पर विशेष पूजा अर्चना का महत्व है, छत्तीसगढ़-मध्य प्रदेश सीमा पर छत्तीसगढ़ के ज्वालेश्वर महादेव के दर पर सुबह से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा है।

धर्म-आस्था पर्यटन की नगरी अमरकंटक जाने के मुख्य मार्ग पर स्थित ज्वालेश्वर महादेव के बारे में मान्यता है कि भगवान शिव ने स्वयं इस मंदिर को स्थापित किया था। पुराणों में इस स्थान को महारूद्र मेरु कहा गया है। ज्वालेश्वर महादेव मंदिर की बहुत अधिक मान्यता है। यहां स्थापित बाणलिंग की कथा का जिक्र स्कंद पुराण में है। इस बाणलिंग पर दूध और शीतल जल अर्पित करने से सभी पाप, दोष और दुखों का नाश हो जाता है।

घने वनों के बीच बसे अमरकंटक तीर्थ के विषय में मान्यता है कि यहां के कण-कण में शिव का वास है। यहां कई प्राचीन शिव मंदिर हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं इस मंदिर को स्थापित किया था। पुराणों में इस स्थान को महा रूद्र मेरु कहा गया है। ज्वालेश्वर महादेव मंदिर की बहुत अधिक मान्यता है।
 
पौराणिक कथा के अनुसार बली का पुत्र बाणासुर अत्यंत बलशाली और शिव भक्त था। बाणासुर ने भगवान शिव की तपस्या कर वर मांगा कि उसका नगर दिव्य और अजेय हो। भगवान शिव को छोड़कर कोई और इस नगर में ना आ सके। इसी तरह बाणासुर ने ब्रह्मा और विष्णु भगवान से भी वर प्राप्त किए।

तीन पुर का स्वामी होने से वह त्रिपुर कहलाया। बताया जाता है कि शक्ति के घमंड में बाणासुर उत्पात मचाने लगा। इसलिए भगवान शिव ने पिनाक नामक धनुष और अघोर नाम के बाण से बाणासुर पर प्रहार किया। इस पर बाणासुर अपने पूज्य शिवलिंग को सिर पर धारण कर महादेव की स्तुति करने लगा।

उसकी स्तुति से शिव प्रसन्न हुए। बाण से त्रिपुर के तीन खंड हुए और नर्मदा के जल में गिर गए और वहां से ज्वालेश्वर नाम का तीर्थ प्रकट हुआ। भगवान शिव के छोड़े बाण से बचा हुआ ही यह शिवलिंग बाणलिंग कहलाया।